भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को 20 साल बाद मिली बड़ी सफलता, भारत में परमाणु रिएक्टर निर्माण का रास्ता साफ

भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को 20 साल बाद मिली बड़ी सफलता, भारत में परमाणु रिएक्टर निर्माण का रास्ता साफ
भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को 20 साल बाद मिली बड़ी सफलता, भारत में परमाणु रिएक्टर निर्माण का रास्ता साफभारत-अमेरिका परमाणु समझौते को 20 साल बाद मिली बड़ी सफलता, भारत में परमाणु रिएक्टर निर्माण का रास्ता साफ

भारत और अमेरिका के बीच करीब दो दशक पहले हुए असैन्य परमाणु समझौते को अब एक ऐतिहासिक सफलता मिली है। अमेरिकी ऊर्जा विभाग (Department of Energy – DOE) ने 26 मार्च 2025 को अमेरिका की कंपनी होल्टेक इंटरनेशनल (Holtec International) को भारत में परमाणु रिएक्टर डिजाइन और निर्माण की अनुमति दे दी है। इस फैसले के साथ भारत में अमेरिका की भागीदारी से परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं के विस्तार का मार्ग प्रशस्त हो गया है।

भारत की तीन कंपनियों को मिलेगी तकनीक

अब Holtec इंटरनेशनल अपनी परमाणु रिएक्टर तकनीक भारत की तीन प्रमुख कंपनियों को हस्तांतरित कर सकती है:

  • होल्टेक एशिया (Holtec Asia)

  • टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स लिमिटेड (Tata Consulting Engineers Ltd – TCEL)

  • एलएंडटी (Larsen & Toubro)

यह तकनीकी सहयोग भारत में रिएक्टर निर्माण की गति बढ़ाने में सहायक होगा।

मनमोहन सिंह के समय बनी नींव, मोदी सरकार में मिली मंजूरी

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते की मूल रूपरेखा 2007 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के बीच तय हुई थी। हालांकि, इसे लागू करने में कानूनी, तकनीकी और नियामक स्तर पर लगभग 20 वर्ष लग गए।

अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस समझौते को वास्तविक रूप मिला है। इसे भारत की रणनीतिक और कूटनीतिक उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है।

भारत की शर्तों पर अमेरिका की सहमति

अब तक अमेरिका केवल भारत को परमाणु रिएक्टर और उपकरणों का निर्यात करता था, लेकिन डिजाइन और निर्माण कार्य भारत में करने की अनुमति नहीं थी।
भारत ने हमेशा यह आग्रह किया कि

  • डिजाइन

  • निर्माण

  • और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण
    भारत में ही हो।

भारत की इसी नीति के चलते यह प्रक्रिया वर्षों तक अटकी रही। अब अमेरिका ने भारत की शर्तों को स्वीकार कर लिया है और दोनों देश संयुक्त रूप से छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) का स्थानीय निर्माण और सह-उत्पादन करेंगे।

ट्रंप सरकार के दौर में मिली हरी झंडी

यह मंजूरी ऐसे समय पर मिली है जब डोनाल्ड ट्रंप दोबारा अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं और उनकी सरकार ‘मेड इन यूएसए’ नीति को प्राथमिकता दे रही है। ऐसे माहौल में भारत को यह स्वीकृति मिलना एक बड़ी कूटनीतिक सफलता माना जा रहा है। इससे भारत-अमेरिका संबंधों में ऊर्जा क्षेत्र में नए युग की शुरुआत हो सकती है।

भारत को होंगे ये प्रमुख लाभ

  1. सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा
    परमाणु रिएक्टरों की स्थापना से भारत को स्वच्छ और सस्ती ऊर्जा उपलब्ध होगी, जो ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से अहम है।

  2. तकनीकी उन्नति
    अमेरिकी तकनीक से भारत की परमाणु रिएक्टर निर्माण क्षमता को बढ़ावा मिलेगा और स्वदेशी तकनीक को भी मजबूती मिलेगी।

  3. तेजी से परियोजना कार्यान्वयन
    अब तक धीमी गति से चल रही परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में तेजी आ सकेगी।

  4. ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम
    भारत अब बड़े पैमाने पर परमाणु ऊर्जा के माध्यम से अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ सकेगा।

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