मुंबई – राज्य सरकार ने अब ठाणे सत्र न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें बदलापुर यौन उत्पीड़न मामले के आरोपी अक्षय शिंदे की मुठभेड़ को फर्जी बताने वाली मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट पर रोक लगा दी गई थी। पिछले सप्ताह ही बॉम्बे हाईकोर्ट ने ठाणे सत्र न्यायालय के इस आदेश पर कड़ी नाराजगी जताई थी और सरकार से कड़े सवाल भी पूछे थे कि क्या वह इस आदेश को चुनौती देने का इरादा रखती है या नहीं। इस फटकार को सुनने के बाद राज्य सरकार ने अब ठाणे सत्र न्यायालय के आदेश को चुनौती दी है।
राज्य सरकार ने न्यायमूर्ति आर. के. सिंह के समक्ष सत्र न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली अपनी याचिका पर तत्काल सुनवाई की मांग की है। एन। लढ्ढा ने पीठ के समक्ष अपना पक्ष रखा। हालाँकि, उच्च न्यायालय दो सप्ताह बाद सुनवाई करने पर सहमत हो गया।
राज्य सरकार की याचिका में कहा गया है कि ट्रायल जज ने गलत निष्कर्ष निकाला है कि अपराध हुआ था और पुलिसकर्मियों को कैदी की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। सत्र न्यायाधीश ने यह मान कर गलती की कि मजिस्ट्रेट द्वारा उन अनुच्छेदों में दिए गए निष्कर्ष न्यायेतर, गैरकानूनी तथा न्यायिक प्राधिकार से परे थे।
याचिका में कहा गया है कि ठाणे अदालत का आदेश गलत है, कानून के विरुद्ध है, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के विपरीत है तथा सुस्थापित कानूनी सिद्धांतों के बिना है।
राज्य सरकार ने यह भी तर्क दिया है कि ठाणे के सत्र न्यायाधीश ने वे 17 जनवरी, 2025 की मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट और सीआईडी द्वारा चल रही जांच की विषय-वस्तु पर उचित रूप से विचार करने में विफल रहे हैं।
मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट में सीआईडी जांच दस्तावेजों की जांच की गई तथा पुलिस हिरासत में कैदी अक्षय शिंदे की मौत के कारणों के संबंध में निष्कर्ष प्रस्तुत किए गए।
सरकार की याचिका में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि चूंकि अक्षय शिंदे मुठभेड़ मामला बॉम्बे उच्च न्यायालय में लंबित था, इसलिए ठाणे के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश को न्यायिक अनुशासन का पालन करते हुए इन पुलिसकर्मियों की पुनरीक्षण याचिका को पहले ही पूरी तरह से खारिज कर देना चाहिए था। याचिका में कहा गया है कि ठाणे सत्र न्यायाधीश ने संबंधित आदेश पारित करने से पहले सीआईडी के सभी जांच दस्तावेजों की गहन जांच भी नहीं की।
याचिका में दावा किया गया है कि सत्र न्यायाधीश ने बीएनएसएस की धारा 196 के तहत वैधानिक उद्देश्य (मजिस्ट्रेट द्वारा हिरासत में मौत की जांच) की गलत व्याख्या की है, जो आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 176 (1) (ए) के बराबर है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि सत्र न्यायाधीश मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट के कुछ पैराग्राफों पर तब तक रोक नहीं लगा सकते जब तक कि पीड़ितों को कार्यवाही के विवरण को चुनौती देने के लिए पर्याप्त अवसर नहीं दिया जाता। इसमें कहा गया कि मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट का मूल्यांकन सम्पूर्ण मामले के रिकॉर्ड तथा मजिस्ट्रेट द्वारा जांचे गए साक्ष्यों और निष्कर्षों की समीक्षा के आधार पर होना चाहिए था।
पिछले सप्ताह बॉम्बे उच्च न्यायालय का ध्यान ठाणे अदालत के आदेश की ओर आकर्षित किया गया। इसके बाद हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई। उच्च न्यायालय ने सवाल उठाया था कि ठाणे सत्र न्यायाधीश इस मामले पर कोई निर्णय कैसे दे सकते हैं, जबकि मामला उच्च न्यायालय में लंबित है। यह कहते हुए कि न्यायाधीश ने अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है, उच्च न्यायालय ने सरकार से पूछा कि क्या वह ठाणे अदालत के आदेश को चुनौती देना चाहेगी। इसके बाद सरकार ने अब उस आदेश को चुनौती दी है।