खालिस्तानी समर्थक अमृतपाल सिंह की नई पार्टी का गठन: कांग्रेस की उम्मीदें और पंजाब की राजनीति पर असर

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जेल में बंद खालिस्तानी समर्थक अमृतपाल सिंह के परिजनों और समर्थकों ने मंगलवार को एक नई पार्टी अकाली दल (वारिस पंजाब दे) के गठन का ऐलान किया। इस कदम के जरिए अमृतपाल सिंह ने स्पष्ट रूप से पंजाब के पंथिक वोट बैंक को साधने की कोशिश की है।

अकाली दल (वारिस पंजाब दे): एक नई शुरुआत

  • पार्टी के नाम से ही जाहिर है कि इसका फोकस पंथिक वोटरों पर है।
  • यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब शिरोमणि अकाली दल (SAD) कमजोर स्थिति में है।
  • सुखबीर सिंह बादल के अध्यक्ष पद छोड़ने और प्रकाश सिंह बादल के निधन के बाद पार्टी नेतृत्व का संकट झेल रही है।
  • हरसिमरत कौर बादल सांसद की भूमिका में हैं, लेकिन पार्टी में उनका प्रभाव सीमित है।
  • इन परिस्थितियों में अमृतपाल सिंह पंथिक वोटरों को नया विकल्प देने की कोशिश कर रहे हैं।

कांग्रेस की बढ़ी उम्मीदें

2022 के विधानसभा चुनाव में सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस को इस नई पार्टी के गठन से फायदा होने की संभावना दिख रही है।

  • कांग्रेस का मानना है कि अकाली दल की कमजोरी के चलते आम आदमी पार्टी (AAP) को जो पंथिक वोट मिला था, वह अब बंट सकता है।
  • अगर अमृतपाल की पार्टी को पंथिक वोटरों का समर्थन मिलता है, तो इससे AAP को सीधा नुकसान होगा।
  • कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर राजा वड़िंग ने कहा, “अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि इसका क्या असर होगा, लेकिन अकाली दल की राजनीतिक जमीन जरूर कमजोर हो चुकी है।

राजनीतिक विश्लेषण और संभावनाएं

  1. AAP पर असर:
    • शिरोमणि अकाली दल के पंथिक वोटरों का बड़ा हिस्सा 2022 में AAP की ओर शिफ्ट हो गया था।
    • अब अमृतपाल की पार्टी यह वोट बैंक छीन सकती है, जिससे AAP का वोट प्रतिशत घटेगा।
  2. कांग्रेस को बढ़त:
    • पंथिक वोटों के बंटवारे से कांग्रेस को चुनावी गणित में फायदा हो सकता है।
    • सिमरनजीत सिंह मान और अमृतपाल सिंह जैसे नेताओं के उभार से पंजाब की राजनीति में नई ध्रुवीकरण की स्थिति बन सकती है।
  3. शिरोमणि अकाली दल की प्रतिक्रिया:
    • सुखबीर बादल ने आरोप लगाया कि अकाली दल को कमजोर करने के लिए यह नई पार्टी बनाई गई है।
    • उन्होंने इसे अकाली राजनीति पर सीधा हमला बताया।

नई पार्टी की चुनौतियां और चिंताएं

  1. अतिवाद की संभावना:
    • नेता विपक्ष प्रताप सिंह बाजवा ने चेताया कि अगर नई पार्टी अतिवाद की ओर बढ़ी, तो पंजाब को नई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
    • पंजाब पहले ही ड्रग्स और कानून व्यवस्था के संकट से जूझ रहा है।
  2. लोकसभा चुनाव पर असर:
    • 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में इस नई पार्टी का प्रदर्शन सभी पार्टियों के समीकरण बदल सकता है।
    • खासकर फरीदकोट लोकसभा सीट पर, जहां सरबजीत सिंह खालसा जैसे नेताओं ने पहले से धार्मिक एजेंडे पर बढ़त बनाई है।
  3. धार्मिक आधार:
    • अमृतपाल सिंह का बयान, “अकाली राजनीति को फिर से मजबूत करेंगे,” उनकी पार्टी की प्राथमिकता को स्पष्ट करता है।
    • हालांकि, यह देखना होगा कि पार्टी केवल पंथिक वोटरों तक सीमित रहती है या व्यापक आधार बनाने में सफल होती है।

भविष्य की राजनीति: क्या होगा पंजाब में?

अकाली दल (वारिस पंजाब दे) का गठन पंजाब की राजनीति में नया मोड़ ला सकता है।

  • AAP को वोटों के बंटवारे से नुकसान होगा।
  • कांग्रेस को अपनी खोई जमीन वापस पाने का मौका मिल सकता है।
  • शिरोमणि अकाली दल अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए नई रणनीतियां तैयार कर सकता है।
  • नई पार्टी का सांप्रदायिक या अतिवादी रुख अपनाना, पंजाब की शांति और सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है।