महाकुंभ: सनातन धर्म का महान पर्व और शाही स्नान का महत्व

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कुंभ मेला सनातन धर्म का सबसे बड़ा और पवित्र धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 साल में एक बार होता है। यह न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि खगोलीय घटनाओं से जुड़ी एक प्राचीन परंपरा का हिस्सा है। ग्रहों की विशिष्ट स्थिति के आधार पर महाकुंभ का आयोजन होता है। इस वर्ष प्रयागराज में महाकुंभ मेला पूरे जोश और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। लाखों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने के लिए संगम में जुट रहे हैं। खास बात यह है कि यह महाकुंभ 144 साल बाद आया है और इसमें शाही स्नान को इस बार अमृत स्नान कहा गया है। आइए जानते हैं इसके पीछे का कारण।

शाही स्नान: परंपरा और इतिहास

महाकुंभ में शाही स्नान को अत्यंत शुभ और पवित्र माना जाता है। यह परंपरा मराठा पेशवा के काल से शुरू हुई थी, जिन्होंने शाही स्नान और पेशवाई की शुरुआत की थी।

  • प्राचीन काल में राजा-महाराज साधु-संतों के साथ भव्य जुलूस लेकर स्नान के लिए निकलते थे।
  • इस परंपरा को शाही स्नान का नाम दिया गया।
  • सूर्य और गुरु ग्रहों की विशिष्ट स्थिति को ध्यान में रखते हुए महाकुंभ का आयोजन किया जाता है, जिससे इसे “राजसी स्नान” भी कहा जाता है।

अमृत स्नान क्यों कहा जाता है?

इस बार शाही स्नान को “अमृत स्नान” नाम दिया गया है। इसका कारण यह है कि महाकुंभ को ग्रहों की ऊर्जा और अमृत के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

  • नागा साधु, जो शंकर भगवान के परम भक्त हैं, इस स्नान को धर्म और आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र मानते हैं।
  • शाही स्नान के दौरान ग्रहों की स्थिति, खासकर सूर्य और गुरु की ऊर्जा, वातावरण को पवित्र बनाती है।

शाही स्नान के नियम

महाकुंभ में शाही स्नान के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन किया जाता है:

  1. पहले नागा साधु करते हैं स्नान:
    • नागा साधुओं को शाही स्नान में प्राथमिकता दी जाती है।
    • यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
  2. गृहस्थ लोगों के लिए नियम:
    • नागा साधुओं के बाद ही गृहस्थ लोग संगम में स्नान कर सकते हैं।
    • स्नान के दौरान पांच डुबकी लगाना अनिवार्य माना गया है।
  3. पवित्रता बनाए रखना:
    • स्नान के समय साबुन या शैंपू का उपयोग वर्जित है।
    • इसे पवित्र जल को अशुद्ध करने वाला माना जाता है।

नागा साधुओं का पहला हक क्यों?

भोलेनाथ के अनुयायी

नागा साधु भगवान शिव के अनुयायी माने जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भोलेनाथ की तपस्या और साधना की वजह से नागा साधु पहले स्नान करने के अधिकारी माने गए।

आदि शंकराचार्य की परंपरा

  • ऐसा कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने धर्म की रक्षा के लिए नागा साधुओं की टोली बनाई थी।
  • अन्य संतों ने नागा साधुओं को धर्म के रक्षक के रूप में मान्यता दी और उन्हें पहले स्नान का अधिकार दिया।
  • नागा साधुओं का स्नान आध्यात्मिक ऊर्जा और धर्म की शक्ति का प्रतीक है।

महाकुंभ का महत्व

महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह सनातन धर्म की संस्कृति, परंपरा और आस्था का प्रतीक है। यह आयोजन:

  • भक्तों को आस्था की डुबकी लगाकर अपने पापों से मुक्ति पाने का अवसर प्रदान करता है।
  • धर्म, आध्यात्मिकता और सामाजिक एकता को बढ़ावा देता है।
  • शाही स्नान और नागा साधुओं की परंपरा सनातन धर्म की गहराई और विविधता को दर्शाती है।