गुजरात हाईकोर्ट ने एक महिला को नोटिस जारी किया है, जिसने अपनी ननद के अंतरजातीय विवाह की जानकारी छिपाने को लेकर पति पर क्रूरता का आरोप लगाया था। यह मामला फैमिली कोर्ट के माध्यम से तलाक के एक विवादित फैसले से जुड़ा है।
मामले की पृष्ठभूमि
दंपती की शादी 2018 में अरेंज मैरिज के रूप में हुई थी। लेकिन महिला को जब पता चला कि उसकी ननद ने अपनी जाति से बाहर शादी कर ली है, तो उसने इसे छिपाने का आरोप लगाते हुए दो दिन बाद ही ससुराल छोड़ दिया। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, महिला इस बात से नाराज थी क्योंकि वह अपनी ननद के विवाह को “नीची जाति” में मानती थी।
तलाक के लिए फैमिली कोर्ट का रुख
2020 में महिला ने भावनगर फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दाखिल की। उसने अपने पति पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपनी बहन की अंतरजातीय शादी की जानकारी छिपाई थी। महिला ने दावा किया कि उसे केवल शादी के दौरान अपनी तीसरी ननद के बारे में पता चला, जिनका नाम पहले चर्चा में नहीं आया था।
इसके अलावा, महिला ने आरोप लगाया कि पति ने पुलिस में उसके परिवार से अपनी जान को खतरा होने की शिकायत की थी और यह शिकायत उसके ऑफिस में मेल कर दी थी। उसने इसे मानसिक उत्पीड़न का आधार बताया।
पति ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग की
पति ने अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए भावनगर फैमिली कोर्ट में वैवाहिक अधिकारों की बहाली की याचिका दाखिल की। उन्होंने अदालत से हस्तक्षेप की गुहार लगाई ताकि उनकी पत्नी घर लौटे।
फैमिली कोर्ट का फैसला
30 सितंबर 2024 को भावनगर फैमिली कोर्ट ने महिला के तलाक की अर्जी को स्वीकार कर लिया और पति की याचिका खारिज कर दी। इस फैसले के खिलाफ पति ने गुजरात हाईकोर्ट का रुख किया और फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी।
हाईकोर्ट का हस्तक्षेप
गुजरात हाईकोर्ट की जस्टिस बीरेन वैष्णव और जस्टिस डी.एम. देसाई की खंडपीठ ने प्रारंभिक सुनवाई के दौरान कहा कि तलाक के लिए महिला द्वारा दिए गए क्रूरता के आधार को जांचने की आवश्यकता है। अदालत ने नोट किया कि महिला ने पति की बहन के अंतरजातीय विवाह को तलाक का कारण बताया था।
अगली सुनवाई की तारीख
हाईकोर्ट ने महिला को नोटिस जारी करते हुए मामले की संयुक्त सुनवाई के लिए 20 जनवरी, 2025 की तारीख तय की है। अदालत अब पति की याचिकाओं पर विस्तार से विचार करेगी और फैमिली कोर्ट के आदेश की समीक्षा करेगी।
मामले का महत्व
यह मामला न केवल व्यक्तिगत अधिकारों और पारिवारिक विवादों के पहलुओं को उजागर करता है, बल्कि समाज में अंतरजातीय विवाह जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित करता है। हाईकोर्ट का फैसला इस मामले में एक मिसाल बन सकता है, जो विवाह में पारदर्शिता और सामाजिक पूर्वाग्रहों पर कानूनी दृष्टिकोण को स्पष्ट करेगा।