एसएएस नगर: 1992 में दो युवकों का अपहरण, फर्जी पुलिस मुठभेड़ में हत्या, और अज्ञात के रूप में उनके शवों के अंतिम संस्कार के मामले में सीबीआई के विशेष न्यायाधीश की अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस मामले में सिटी तरनतारन के तत्कालीन एसएचओ और पुलिसकर्मियों को दोषी पाया गया। अदालत ने थाना सिटी के तत्कालीन प्रभारी गुरबचन सिंह को धारा 302 के तहत उम्रकैद और दो लाख रुपये जुर्माने की सजा दी। इसके अतिरिक्त, धारा 364 के तहत 7 साल कैद और 50 हजार रुपये जुर्माना, धारा 343 के तहत 2 साल कैद और 25 हजार जुर्माना, और धारा 218 के तहत 2 साल कैद व 25 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई।
दूसरे आरोपी एएसआई रेशम सिंह को भी धारा 302 के तहत उम्रकैद और दो लाख रुपये जुर्माना, धारा 120बी व 218 के तहत 2 साल कैद और 25 हजार रुपये जुर्माने की सजा दी गई। तीसरे आरोपी, पुलिसकर्मी हंस राज को धारा 302 के तहत उम्रकैद और दो लाख रुपये जुर्माना, और धारा 120बी व 218 के तहत 2 साल कैद और 25 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई।
इस मामले की सुनवाई के दौरान चौथे आरोपी पुलिसकर्मी अर्जुन सिंह की दिसंबर 2021 में मृत्यु हो गई, जिसके बाद उनके खिलाफ कार्यवाही समाप्त कर दी गई।
32 साल बाद न्याय
सीबीआई कोर्ट की चार्जशीट के अनुसार, 18 नवंबर 1992 को एसएचओ गुरबचन सिंह के नेतृत्व में पुलिस ने जगदीप सिंह उर्फ मक्खन को उनके घर से अगवा किया। अपहरण से पहले, पुलिस द्वारा की गई फायरिंग में मक्खन की सास सविंदर कौर की मौत हो गई थी। इसी तरह, 21 नवंबर 1992 को गुरनाम सिंह उर्फ पाली को भी उनके घर से अगवा किया गया।
इन दोनों युवकों को 30 नवंबर 1992 को गुरबचन सिंह और उनकी टीम ने फर्जी पुलिस मुठभेड़ में मार डाला और शवों को अज्ञात बताकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया।
यह मामला न्यायालय में 32 वर्षों तक चला, और अंततः दोषियों को सजा सुनाई गई। यह फैसला झूठे पुलिस एनकाउंटर से प्रभावित लोगों के लिए न्याय की मिसाल के रूप में देखा जा रहा है।