बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से देश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण की औपचारिक मांग की है। इस पर भारत के लिए बांग्लादेश में पूर्व उच्चायुक्त महेश सचदेवा ने कहा कि प्रत्यर्पण प्रक्रिया को अदालत में चुनौती देकर शेख हसीना इसे रोक सकती हैं।
प्रत्यर्पण का आधार और संभावित रुकावटें
1. भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि:
- भारत और बांग्लादेश के बीच 2013 में प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर हुए थे, जिसे 2016 में संशोधित किया गया।
- इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच आतंकवाद और उग्रवाद से निपटना था।
2. राजनीतिक मामलों में प्रत्यर्पण से इनकार:
- संधि के तहत राजनीतिक प्रकृति के मामलों में प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है।
- महेश सचदेवा के अनुसार, शेख हसीना अदालत का रुख कर सकती हैं और यह तर्क दे सकती हैं कि बांग्लादेश में उनके साथ गलत व्यवहार होने की संभावना है।
3. भारत का रुख:
- भारत यह दावा कर सकता है कि बांग्लादेश में शेख हसीना को न्याय प्रणाली के तहत उचित व्यवहार मिलने की गारंटी नहीं है।
- यूरोपीय देशों द्वारा भारत के प्रत्यर्पण अनुरोधों को खारिज करने के मामलों का हवाला देते हुए सचदेवा ने कहा कि इसी तर्ज पर भारत भी प्रत्यर्पण को रोक सकता है।
यूरोप के मामलों का उदाहरण
- भारत ने यूरोप से आतंकवादियों के प्रत्यर्पण की मांग की थी, जिसे यह कहकर खारिज कर दिया गया कि भारतीय न्यायिक प्रणाली और जेलें यूरोपीय मानकों के अनुरूप नहीं हैं।
- भगोड़े उद्योगपति विजय माल्या ने भी अपने प्रत्यर्पण के खिलाफ इन्हीं तर्कों का इस्तेमाल किया था।
बांग्लादेश की नई मांग
1. भारत को नोट भेजा गया:
- बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से शेख हसीना को वापस भेजने का अनुरोध करते हुए कहा है कि उन्हें न्याय का सामना करने के लिए देश लौटना चाहिए।
- हालांकि, नोट में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि शेख हसीना पर क्या आरोप हैं।
2. द्विपक्षीय संबंधों पर प्रभाव:
- सचदेवा ने कहा कि शेख हसीना के भारत में रहने से भारत और बांग्लादेश के रिश्तों पर असर पड़ सकता है।
- यह बांग्लादेश में भारत विरोधी भावना को भी बढ़ावा दे सकता है।
प्रत्यर्पण पर संभावित विवाद
भारत और बांग्लादेश के बीच मजबूत कूटनीतिक संबंधों के बावजूद, प्रत्यर्पण प्रक्रिया में कई चुनौतियां हैं:
- राजनीतिक प्रकृति के मामले: संधि के तहत भारत को इस आधार पर प्रत्यर्पण से इनकार करने का अधिकार है।
- भारत का तटस्थ रुख: भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी निर्णय बांग्लादेश में घरेलू राजनीति या भारत-बांग्लादेश संबंधों को नकारात्मक रूप से प्रभावित न करे।