हाल ही में चाय की कीमतों में तेज गिरावट देखी जा रही है। बीते एक हफ्ते में चाय के दामों में 8% की गिरावट आई है, और यह 184 रुपये प्रति किलोग्राम से नीचे पहुंच गई है। वहीं, एक महीने में चाय की कीमतों में 15% तक की कमी दर्ज की गई है। यह गिरावट घरेलू बाजार में आपूर्ति बढ़ने और जियोपॉलिटिकल समस्याओं के कारण चाय के निर्यात में कमी का परिणाम है।
चाय की कीमतों पर मौजूदा स्थिति
पिछले एक हफ्ते और महीने का प्रदर्शन:
- 1 हफ्ते में गिरावट: चाय के दामों में 8% की कमी।
- 1 महीने में गिरावट: चाय की कीमतें 15% तक गिरीं।
- हालांकि, जनवरी 2024 से अब तक चाय के दामों में 21% का उछाल देखा गया है।
- 1 साल का प्रदर्शन: पिछले 1 साल में चाय की कीमतों में 15% की तेजी दर्ज की गई है।
गिरावट के कारण
1. जियोपॉलिटिकल समस्याएं:
- मध्य-पूर्व संकट के चलते चाय के निर्यात पर असर पड़ा है।
- निर्यात में कमी से घरेलू बाजार में आपूर्ति बढ़ी, जिससे कीमतों पर दबाव आया।
2. घरेलू खपत में गिरावट:
- घरेलू खपत में कमी आने की संभावना जताई जा रही है।
- कंजम्पशन पैटर्न में बदलाव इंडस्ट्री के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
3. नेपाल की चाय का प्रभाव:
- नेपाल से आयातित चाय ने भारतीय चाय बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ा दी है।
उत्पादन और बाजार का परिदृश्य
चाय उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र:
भारत में चाय का उत्पादन मुख्य रूप से असम, पश्चिम बंगाल, और उत्तर-पूर्वी राज्यों में होता है। इसके अलावा, देश के दक्षिणी हिस्से में भी बड़े पैमाने पर चाय की खेती की जाती है।
- दुनिया में स्थिति: चाय उत्पादन में चीन पहले स्थान पर है, जबकि भारत दूसरे स्थान पर है।
TAI प्रेसिडेंट संदीप सिंघानिया का बयान:
- उन्होंने बताया कि इस साल 30 नवंबर के बाद भी चाय की पत्तियों की तुड़ाई पर रोक जारी रही।
- दिसंबर तक उत्पादन में गिरावट: दिसंबर अंत तक चाय का उत्पादन 120 मिलियन किलोग्राम कम रहने का अनुमान है।
- कीमतों का असंतोषजनक स्तर:
- प्रीमियम चाय की ऊपरी कीमत 300 रुपये प्रति किलोग्राम है, जो इंडस्ट्री की उम्मीदों से कम है।
- पिछले 2 महीनों में चाय के दामों में 20-25% की गिरावट दर्ज की गई है।
भविष्य की चुनौतियां और संकेत
- उत्पादन और खपत का असंतुलन:
- उत्पादन के आंकड़े या तो गलत हो सकते हैं या घरेलू खपत में गिरावट आई है। दोनों ही स्थितियां उद्योग के लिए गंभीर चुनौती हैं।
- मध्य-पूर्व संकट का प्रभाव:
- जियोपॉलिटिकल तनाव का असर एक्सपोर्ट पर लंबे समय तक बना रह सकता है।