राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने सोमवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद राजनीतिक गलियारों में अटकलें लगने लगीं कि भुजबल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थाम सकते हैं। हालांकि, मुलाकात के बाद भुजबल ने इन चर्चाओं को खारिज करते हुए कहा, “मैं किसी से नाराज नहीं हूं। मुख्यमंत्री से ओबीसी मतदाताओं की भूमिका और महायुति की जीत पर चर्चा की।”
अजित पवार पर साधा निशाना
महाराष्ट्र मंत्रिमंडल से बाहर किए जाने के मुद्दे पर छगन भुजबल ने पहले अजित पवार पर तीखा हमला किया था। उन्होंने दावा किया था कि मुख्यमंत्री फडणवीस उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करना चाहते थे, लेकिन यह संभव नहीं हो सका। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “जहां नहीं चैना, वहां नहीं रहना।” भुजबल ने कहा था कि वे मंत्री न बनाए जाने से निराश नहीं हैं, लेकिन उनके साथ हुए व्यवहार से अपमानित महसूस कर रहे हैं।
राज्यसभा सीट की पेशकश ठुकराई
भुजबल ने नासिक में पत्रकारों से बातचीत के दौरान खुलासा किया कि उन्हें हाल ही में राज्यसभा सीट की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा, “मुझे मई में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा गया था, लेकिन मेरे नाम को अंतिम रूप नहीं दिया गया। कुछ हफ्ते पहले मुझे राज्यसभा सीट देने का प्रस्ताव आया, जिसे मैंने ठुकरा दिया।”
भुजबल की नाराजगी: “मैं खिलौना नहीं हूं”
भुजबल ने राज्यसभा सीट की पेशकश को लेकर नाराजगी जताते हुए कहा, “जब मैंने राज्यसभा जाने की इच्छा जाहिर की थी, तब मेरी बात नहीं मानी गई। अब अचानक मुझे राज्यसभा सीट देने का प्रस्ताव क्यों? क्या मैं आपके हाथों का खिलौना हूं? आप जब चाहें मुझे चुनाव लड़ने को कहें और जब चाहें रुकने को कहें।”
उन्होंने आगे कहा, “अगर मैं इस्तीफा दे दूं, तो मेरे निर्वाचन क्षेत्र के लोग क्या महसूस करेंगे? क्या उनके साथ यह धोखा नहीं होगा?”
भाजपा में शामिल होने की अटकलें
फडणवीस के साथ भुजबल की मुलाकात के बाद उनकी भाजपा में शामिल होने की संभावनाओं को बल मिला। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि यह मुलाकात किसी भी तरह से राजनीतिक दिशा बदलने का संकेत नहीं है। उन्होंने कहा, “मैंने सिर्फ ओबीसी समुदाय के मुद्दों पर चर्चा की और महायुति की जीत में उनकी भूमिका पर अपनी बात रखी।”
भुजबल के राजनीतिक भविष्य पर नजरें
छगन भुजबल महाराष्ट्र की राजनीति के अनुभवी चेहरे हैं। उनकी भाजपा से नजदीकियां जहां राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बनी हुई हैं, वहीं एनसीपी में उनकी नाराजगी पार्टी के लिए चिंता का कारण हो सकती है।