इस काल में अशांति और अनियंत्रित विचारों का प्रभाव आम हो गया है। हमारा मन बार-बार अस्थिर हो जाता है और इस अस्थिरता का मुख्य कारण हमारे विचारों का अनियंत्रित प्रवाह है। इन विचारों को शांत करने और मन को स्थिर रखने के लिए आमतौर पर कुछ लोग खुद को बहुत व्यस्त रखने की कोशिश करते हैं। यह प्रक्रिया कभी-कभी प्रभावी होती है लेकिन इसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलू भी होते हैं। जब मन किसी समस्या, इच्छा या दुःख में घिरा होता है तो वह बार-बार उसी के बारे में सोचता है। इसे ‘अतिसोचना’ कहा जा सकता है।
यह स्थिति न केवल मानसिक तनाव बढ़ाती है बल्कि व्यक्ति की रचनात्मकता और निर्णय लेने की क्षमता पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है। ऐसे में व्यक्ति खुद को व्यस्त रखते हुए अपने विचारों पर नियंत्रण रखने की कोशिश करता है। महात्मा गांधी ने कहा है, “आपके विचार आपके शब्द बन जाते हैं, आपके शब्द आपके कार्य बन जाते हैं और आपके कार्य ही आपका भविष्य बन जाते हैं।”
इसलिए अपने विचारों को शुद्ध और शांत रखें।” यह हमें हमारे नकारात्मक विचारों से दूर ले जाता है और हमारा समय और ऊर्जा सकारात्मक गतिविधियों में लगाता है।
हालाँकि, अत्यधिक व्यस्तता की स्थिति से बचना भी महत्वपूर्ण है। यदि हम केवल काम में डूबे रहकर अपनी भावनाओं को नजरअंदाज करते हैं, तो इससे समस्या का स्थायी समाधान नहीं होता है। दरअसल, विचारों का सामना करना और उनके पीछे के कारणों को समझना बहुत जरूरी है। अत्यधिक सोचने से बचने के लिए खुद को व्यस्त रखना एक व्यावहारिक उपाय है, लेकिन यह तभी प्रभावी है जब इसे संतुलित तरीके से लागू किया जाए। गौतम बुद्ध ने कहा है कि जो अपने विचारों पर नियंत्रण रखता है, वह जीवन के हर क्षेत्र में जीत हासिल करता है। मन ही सब कुछ है, आप जैसा सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं।