भारत की सीमाओं पर सुरक्षा के लिहाज से श्रीलंका का अहम आश्वासन

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श्रीलंका ने सोमवार को भारत को एक महत्वपूर्ण आश्वासन दिया, जिसमें उसने भरोसा दिलाया कि उसकी जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ किसी भी प्रकार की हानिकारक गतिविधियों के लिए नहीं किया जाएगा। श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने यह बयान जारी किया। इस बयान में कोलंबो ने अपने रुख को दोहराते हुए भारत को वादा निभाने का भरोसा दिया। यह आश्वासन ऐसे समय पर आया है, जब चीन हिंद महासागर में अपने आक्रामक मिशन को तेजी से आगे बढ़ा रहा है।

चीन का बढ़ता प्रभाव और भारत की चिंताएं

गौरतलब है कि श्रीलंका ने कर्ज चुकाने में असमर्थता के चलते हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन का नियंत्रण दे दिया है। इस बंदरगाह का उपयोग चीन निगरानी और जासूसी गतिविधियों के लिए करता रहा है। बीते कुछ वर्षों में चीन ने 25,000 टन वजनी उपग्रह और बैलिस्टिक मिसाइल ट्रैकिंग जहाज ‘युआन वांग-5’ को कई बार हंबनटोटा में तैनात किया है। श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति और भारत से निकटता के कारण नई दिल्ली इस गतिविधि को अपने लिए एक रणनीतिक खतरे के रूप में देखता है।

जासूसी जहाजों की मौजूदगी: भारत के लिए सुरक्षा चुनौती

अगस्त 2022 में, भारत ने श्रीलंका से इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की थी। इसके बाद श्रीलंका ने चीन से जहाजों की उपस्थिति को स्थगित करने की अपील की थी। हालांकि, बाद में चीनी जहाज को फिर से हंबनटोटा बंदरगाह पर डॉक करने की अनुमति दे दी गई। तब से चीन के निगरानी और जासूसी जहाज लगातार हिंद महासागर क्षेत्र में गश्त कर रहे हैं। ये गतिविधियां भारत की समुद्री सुरक्षा और सामरिक हितों के लिए गंभीर खतरा मानी जाती हैं।

हंबनटोटा बंदरगाह पर चीन का कब्जा कैसे हुआ?

हंबनटोटा बंदरगाह का निर्माण श्रीलंका ने चीन से 1.7 अरब डॉलर का कर्ज लेकर किया था। लेकिन श्रीलंका इसे चुकाने में असमर्थ रहा। सालाना 100 मिलियन डॉलर का भुगतान न कर पाने की स्थिति में, श्रीलंका को यह बंदरगाह 99 साल की लीज पर चीन को सौंपना पड़ा। यह बंदरगाह हिंद महासागर में चीन की रणनीतिक पकड़ को मजबूत करता है और भारत के लिए बड़ी चुनौती पेश करता है।

भारत-श्रीलंका साझेदारी और रणनीतिक सहयोग

इन परिस्थितियों के बीच, भारत और श्रीलंका ने सोमवार को आपसी सुरक्षा और रणनीतिक हितों की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई। नई दिल्ली में आयोजित प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत के दौरान, श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की।

द्विपक्षीय समझौतों पर सहमति

इस बैठक में दोनों देशों ने निवेश आधारित विकास, कनेक्टिविटी, और आपसी व्यापार बढ़ाने पर जोर दिया। साथ ही, क्षमता निर्माण और सहयोग बढ़ाने के लिए दो समझौता ज्ञापनों (MoUs) पर हस्ताक्षर किए गए। यह साझेदारी दोनों देशों के बीच लंबे समय तक स्थिरता और पारस्परिक लाभ सुनिश्चित करने का एक प्रयास है।

भारत के लिए श्रीलंका का आश्वासन क्यों महत्वपूर्ण है?

  1. सामरिक सुरक्षा: श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति भारत के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारत के दक्षिणी हिस्से के करीब स्थित है।
  2. चीन का प्रभाव: श्रीलंका में चीनी निवेश और रणनीतिक बंदरगाह भारत के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं।
  3. हिंद महासागर की सुरक्षा: हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती मौजूदगी भारत की सामरिक स्थिति को चुनौती देती है।
  4. संबंधों में सुधार: श्रीलंका के साथ मजबूत साझेदारी से भारत अपने क्षेत्रीय सुरक्षा हितों को सुरक्षित कर सकता है।

 

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