लखनऊ, 15 दिसम्बर (हि. स.)। उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग और मॉडल बाॅयोगैस समूह के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित संगोष्ठी में उप्र गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष श्याम बिहारी गुप्त ने कहा कि हर किसान एक गाय को गोद ले तो उत्तर प्रदेश में गोवंशों की समस्या का समाधान हो जाएगा। गोवंश आधारित प्राकृतिक खेती न केवल मिट्टी के बाॅयो मास को बढ़ा कर कृषि भूमि को सुधारने में मदद करेगी बल्कि यह साथ ही साथ ग्रामीण क्षेत्रों में गोपालन से जुड़े अन्य कुटीर उद्योगों को भी बढ़ावा भी देगी।
एक किसान एक गाय अभियान संगोष्ठी में मुख्य रूप से रहे डॉ. कमल टावरी (पूर्व आईएएस, पूर्व सचिव, भारत सरकार), निरंजन गुरु (कुलपति, पंचगव्य विद्यापीठम विश्वविद्यालय, चेन्नई) और पी. एस. ओझा (पूर्व सलाहकार, कृषि विभाग, उत्तर प्रदेश, एवं पूर्व मेम्बर, उत्तर प्रदेश बाॅयो एनर्जी डेवलपमेंट बोर्ड) ने अपने विचार प्रस्तुत किये। विशिष्ट अतिथि रहे गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष श्याम बिहारी गुप्त ने कहा कि प्राकृतिक खेती द्वारा हम अपने समाज को रसायन मुक्त भोजन भी उपलब्ध करवा सकेंगे। इससे न केवल किसानों का कल्याण होगा, अपितु समग्र समाज को स्वस्थ और सुरक्षित आहार मिलेगा।
विशिष्ट अतिथि रहे डॉ. कमल टावरी ने गोशालाओं की आर्थिक स्थिति पर कहा कि गोशालाओं को तब तक आत्मनिर्भर नहीं बनाया जा सकता जब तक गोवंश से उन्हें आर्थिक लाभ नहीं प्राप्त होगा। गोशालाओं को अनुदान पर आश्रित रखने के बजाय हमें उन्हें एक ठोस बिजनेस मॉडल के तहत चलाने की दिशा में काम करना होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि हमें गोशालाओं को एक स्वावलंबी इकाई के रूप में विकसित करना होगा। ताकि वे गोवंश से प्राप्त उत्पादों जैसे दूध, गोबर, गोमूत्र एवं अन्य पंचगव्य उत्पादों से भी आर्थिक लाभ कमा सकें।
डॉ. टावरी ने कहा कि जब तक गोशालाओं में आर्थिक स्वावलंबन नहीं होगा, तब तक वे अनुदान पर निर्भर रहेंगी। इस समस्या को हल करने के लिए हमें एक उपयुक्त बिजनेस मॉडल जल्द से जल्द प्रदेश में लागू करना होगा, जो गोशालाओं को आर्थिक रूप से सुदृढ़ बना सके।
पीएस ओझा ने कहा कि बाॅयोगैस प्लांट केवल गोवंश से उत्पन्न अवशेषों का उपयोग करने का एक तरीका नहीं है, बल्कि यह किसानों को सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने में भी मदद करता है। इसके साथ ही, गोवंश से प्राप्त अवशेषों से जैविक खाद का उत्पादन किया जा सकता है, जो प्राकृतिक खेती के लिए अत्यंत लाभकारी है।
उन्होंने बाॅयोगैस प्रौद्योगिकी और उसके कृषि एवं पर्यावरणीय लाभों के बारे में विस्तार से चर्चा की। इसके साथ ही गोवंश से प्राप्त अवशेषों से जैविक खाद का उत्पादन किया जा सकता है, जो प्राकृतिक खेती के लिए अत्यंत लाभकारी है। उन्होंने यह भी बताया कि बाॅयोगैस प्रौद्योगिकी से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी यह एक स्थिर और दीर्घकालिक समाधान है।