वास्तु शास्त्र एक प्राचीन भारतीय विद्या है जो भवन निर्माण से जुड़ी चीजों के शुभ-अशुभ प्रभावों को बताती है। अगर किसी व्यक्ति के जीवन में समस्याएं बनी हुई हैं, तो इसका कारण वास्तु दोष हो सकता है। वास्तु शास्त्र भूमि, दिशाओं और ऊर्जा के संतुलन के सिद्धांत पर आधारित है। इसमें पांच तत्वों — पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश को संतुलित करने की बात कही जाती है।
वास्तु शास्त्र में किन सावधानियों को समझना चाहिए?
वास्तु शास्त्र का सही लाभ लेने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है:
- कुंडली का अध्ययन:
- कुंडली का सही अध्ययन करके वास्तु दोषों का निवारण करना चाहिए।
- भवन और फ्लैट का अंतर:
- भूमि पर बने मकान और फ्लैट के वास्तु सिद्धांत अलग-अलग होते हैं।
- रंगों का चयन:
- घर के रंगों का भी खास ध्यान रखें, क्योंकि रंगों से घर की ऊर्जा प्रभावित होती है।
- घर के सदस्यों की प्रकृति:
- घर में रहने वाले लोगों के स्वभाव और गतिविधियों का भी वास्तु पर असर पड़ता है।
भूमि पर बने घर में रखें इन बातों का ध्यान
- मुख्य दिशा का ध्यान:
- घर का मुख्य द्वार सही दिशा में होना चाहिए।
- सूर्य के प्रकाश:
- घर में पर्याप्त सूर्य का प्रकाश आना चाहिए।
- मुखिया और वास्तु का तालमेल:
- घर के मुखिया की कुंडली और घर के वास्तु में संतुलन होना चाहिए।
- रंगों से सुधार:
- वास्तु दोषों को ठीक करने के लिए सही रंगों का प्रयोग करें।
- पूजा स्थल और सीढ़ियां:
- पूजा स्थल और सीढ़ियों की सही स्थिति सुनिश्चित करें।
- नियमित पूजा:
- घर में नियमित रूप से पूजा-अर्चना करना शुभ होता है।
फ्लैट के लिए वास्तु शास्त्र के उपाय
- सूर्य प्रकाश और हवा:
- फ्लैट में दिशा की बजाय सूर्य के प्रकाश और हवा की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए।
- रंगों का चयन:
- फ्लैट के रंग हल्के और शांत होने चाहिए।
- पूजा स्थल:
- फ्लैट में पूजा स्थल को साफ और सक्रिय रखें।
- प्रवेश द्वार:
- फ्लैट के प्रवेश द्वार को सुंदर और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर बनाएं।
घर के सही स्ट्रक्चर के लिए वास्तु टिप्स
- रसोई:
- रसोईघर दक्षिण-पूर्व दिशा में होना चाहिए। इससे घर में अन्न-धन की कभी कमी नहीं होती।
- शयनकक्ष:
- बेडरूम दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए। इससे पति-पत्नी के रिश्तों में मिठास बनी रहती है।
- पूजा घर:
- पूजा स्थल या मंदिर को उत्तर-पूर्व दिशा में बनाना शुभ होता है। इससे ईश्वर की कृपा हमेशा बनी रहती है।
- मुख्य द्वार:
- मुख्य द्वार उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।