धार्मिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख, जानें पूरा मामला

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी में कहा है कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान, जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह स्पष्ट किया। मामला कलकत्ता हाईकोर्ट के एक फैसले से जुड़ा है, जिसमें 77 मुस्लिम समुदायों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में शामिल करने के राज्य सरकार के फैसले को अवैध करार दिया गया था।

हाईकोर्ट के फैसले को SC में दी गई चुनौती

पश्चिम बंगाल सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट के 22 मई, 2024 के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार ने धर्म के आधार पर 77 मुस्लिम समुदायों को ओबीसी वर्ग में शामिल किया था, जो असंवैधानिक है।

  • हाईकोर्ट ने 2012 के पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग अधिनियम के तहत 37 जातियों को ओबीसी में शामिल करने के फैसले को भी रद्द कर दिया।
  • अदालत ने यह भी कहा कि आरक्षण देने से पहले सर्वेक्षण और डेटा संग्रह की प्रक्रिया में गंभीर खामियां थीं।

कपिल सिब्बल ने रखा राज्य सरकार का पक्ष

पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी।

  • उन्होंने कहा कि आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया था।
  • सिब्बल ने यह भी तर्क दिया कि हाईकोर्ट के फैसले से हजारों छात्रों और नौकरी चाहने वालों के अधिकार प्रभावित होंगे।
  • उन्होंने धारा 12 जैसे प्रावधान को रद्द करने पर आपत्ति जताई, जो राज्य सरकार को जातियों की पहचान और वर्गीकरण का अधिकार देता है।

सिब्बल का पक्ष: क्या था तर्क?

  1. पिछड़ेपन पर आधारित आरक्षण:

    सिब्बल ने कहा कि रंगनाथ आयोग और अन्य समितियों ने भी मुस्लिम समुदायों की सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन की स्थिति को मान्यता दी थी।

  2. डेटा और सिफारिशों का हवाला:
    • 77 मुस्लिम समुदायों को ओबीसी में शामिल करने का निर्णय केंद्रीय सूची और मंडल आयोग की सिफारिशों पर आधारित था।
    • उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय (मुसलमान) 27-28% आबादी के साथ पर्याप्त प्रतिनिधित्व से वंचित है।
  3. हाईकोर्ट का फैसला अनुचित:

    सिब्बल ने कहा कि कार्यपालिका के अधिकार में हस्तक्षेप करना अनुचित है।

हाईकोर्ट का फैसला और विवाद

  • हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 77 समुदायों को शामिल करने का निर्णय राजनीतिक मंशा से प्रेरित था।
  • 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री के बयान के बाद, बिना पिछड़ा वर्ग आयोग की सलाह के यह निर्णय लिया गया था।
  • हाईकोर्ट ने यह भी पाया कि सर्वेक्षण और डेटा संग्रह की प्रक्रिया पूरी नहीं की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई ने इस मामले में सख्त रुख अपनाया।

  • उन्होंने कहा कि आरक्षण केवल सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया जा सकता है, धर्म के आधार पर नहीं।
  • कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह यह साबित करे कि ओबीसी सूची में शामिल नई जातियां वास्तव में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग से इन समुदायों को शामिल करने से पहले परामर्श किया गया था।

अगली सुनवाई 7 जनवरी को होगी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की अगली विस्तृत सुनवाई 7 जनवरी 2025 को की जाएगी। राज्य सरकार को तब तक मात्रात्मक आंकड़े पेश करने का निर्देश दिया गया है।

मामले की मुख्य बातें:

  1. क्या कहा हाईकोर्ट ने?
    • 77 मुस्लिम समुदायों को ओबीसी में शामिल करना धर्म के आधार पर था।
    • 2012 के पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग अधिनियम के कई प्रावधान रद्द।
  2. राज्य सरकार का तर्क:
    • आरक्षण पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया।
    • हजारों छात्रों और नौकरी चाहने वालों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  3. सुप्रीम कोर्ट का रुख:
    • धर्म के आधार पर आरक्षण असंवैधानिक।
    • पिछड़ेपन के आधार पर मात्रात्मक आंकड़े प्रस्तुत करें।
  1. सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या है?
    धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
  2. पश्चिम बंगाल सरकार ने क्या दलील दी?
    आरक्षण पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया, न कि धर्म के आधार पर।
  3. हाईकोर्ट ने आरक्षण क्यों रद्द किया?
    हाईकोर्ट ने पाया कि आरक्षण देने से पहले सर्वेक्षण और डेटा संग्रह की प्रक्रिया अधूरी थी।
  4. क्या होगा अगली सुनवाई में?
    सुप्रीम कोर्ट ने 7 जनवरी 2025 को मामले की विस्तृत सुनवाई का निर्देश दिया है।
  5. क्या यह फैसला अन्य राज्यों को प्रभावित करेगा?
    यह फैसला अन्य राज्यों में आरक्षण नीति को लेकर एक मिसाल स्थापित कर सकता है।