क्या चीनी की जगह गुड़ खाने से डायबिटीज़ होती है या नहीं? ग़लतफ़हमी की वजह से भारतीयों में डायबिटीज़ फैल रही है चुपके से

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भारत में मधुमेह एक तेजी से बढ़ती स्वास्थ्य समस्या बन गई है। इस बीमारी को लेकर लोगों में कई मिथक और भ्रांतियां गहराई से फैली हुई हैं। यह धारणा कि चीनी की जगह गुड़ खाने या निचोड़ा हुआ पनीर खाने से मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता है, भी इन्हीं भ्रांतियों में से एक है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के मिथक न केवल लोगों के स्वास्थ्य के लिए घातक हैं, बल्कि मधुमेह रोगियों की संख्या बढ़ाने में भी भूमिका निभा रहे हैं।

कानपुर डायबिटीज एसोसिएशन की हाल ही में हुई बैठक में विशेषज्ञों ने बताया कि भारत में मधुमेह रोगियों की संख्या 1980 में एक करोड़ थी, जो 2014 तक बढ़कर छह करोड़ हो गई और वर्तमान में 20 करोड़ तक पहुंच गई है। यह आंकड़ा चिंता का विषय है। विशेषज्ञों का कहना है कि मधुमेह के बढ़ते मामलों के पीछे मुख्य कारण असंतुलित आहार, शारीरिक गतिविधियों की कमी और मिथकों में फंसे रहना है।

भ्रम से बहुत नुकसान हो रहा है

विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया कि गुड़, छेना या अन्य पारंपरिक भोजन खाने से मधुमेह को नियंत्रित करने में कोई विशेष लाभ नहीं होता है। गुड़ और चीनी दोनों का ग्लाइसेमिक इंडेक्स लगभग एक जैसा होता है, जिसके कारण ये शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को तेजी से बढ़ा सकते हैं। छेना निचोड़कर या चावल उबालकर खाने जैसे उपाय भी मधुमेह को कम घातक नहीं बनाते हैं।

मोटापा मतलब मधुमेह का दस्तक।

दिल्ली से आए डॉ. रदीप वाघवान ने डायबिटीज के मरीजों में मेटाबॉलिक सर्जरी के फायदों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि जब इससे फायदा नहीं होता है, तो सर्जरी ही सबसे बेहतर उपाय है। पेट वाले लोगों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। वहीं, एक अन्य डॉ. सरिता बजाज ने शुगर को कंट्रोल में रखने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अगर गर्भावस्था के दौरान इसे कंट्रोल में नहीं रखा गया, तो यह गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए भी खतरनाक है। जन्म के बाद बच्चे को कई गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ता है। उन्होंने सलाह दी कि गर्भावस्था के दौरान बढ़ा हुआ वजन कम करना चाहिए।

महत्वपूर्ण सुझाव

* अपने खाने की मात्रा पर नियंत्रण रखें और पौष्टिक आहार लें।

* प्रतिदिन कम से कम आधे घंटे पैदल चलें।

* 30 वर्ष की आयु के बाद नियमित रूप से शुगर की जांच करवाएं।

* भ्रमित न हों और बीमारी को नजरअंदाज न करें।

* हर दो से तीन महीने में डॉक्टर से परामर्श लेते रहें।