अब पेशाब बताएगा कैंसर की कहानी! जानिए कैसे बदलने वाली है मेडिकल साइंस की तस्वीर

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फेफड़े के कैंसर की पहचान अब पहले से कहीं ज़्यादा आसान और कारगर हो सकती है। वैज्ञानिकों ने एक नया मूत्र परीक्षण विकसित किया है जो कैंसर के शुरुआती लक्षणों का पता लगाने में मदद कर सकता है। इस खोज से चिकित्सा विज्ञान में एक नई क्रांति आने की संभावना है।

इंग्लैंड में फेफड़े के कैंसर के ज़्यादातर मामलों का पता तब चलता है जब बीमारी अपने अंतिम चरण में पहुँच जाती है। कैंसर रिसर्च यूके के आंकड़ों के अनुसार, 46% मामलों का पता तब चलता है जब उपचार के विकल्प सीमित होते हैं। यू.के. में हर साल 43,000 नए मामले सामने आते हैं, लेकिन इनमें से केवल 10% मरीज़ ही उपचार के 10 साल बाद जीवित रह पाते हैं।

यह परीक्षण कैसे काम करता है?

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने यह टेस्ट विकसित किया है, जो पेशाब में ‘ज़ॉम्बी सेल प्रोटीन’ की पहचान करता है। ये प्रोटीन फेफड़ों के कैंसर के शुरुआती लक्षणों का संकेत देते हैं। इस टेस्ट को चूहों पर सफलतापूर्वक लागू किया गया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस तकनीक से दूसरे तरह के कैंसर, जैसे ब्रेस्ट कैंसर, स्किन कैंसर और पैन्क्रियाटिक कैंसर का भी पता लगाया जा सकता है।

वैज्ञानिक

लिजालजाना फ्रुक का कहना है कि कैंसर होने से पहले ऊतक बदल जाते हैं। इनमें क्षतिग्रस्त कोशिकाएं एक खास तरह का प्रोटीन छोड़ती हैं, जिसे यह टेस्ट पहचान सकता है। इसका मतलब है कि कैंसर के शुरुआती लक्षण मिलने पर ही इलाज शुरू किया जा सकता है, जिससे मरीज के बचने की संभावना बढ़ जाएगी।

भारत में फेफड़े के कैंसर की स्थिति  2020 में फेफड़े के कैंसर के 72,510 नए मामले सामने आए, जो कुल कैंसर मामलों का 5.9% है। इसी वर्ष इस बीमारी के कारण 66,279 मौतें हुईं। भारत में इस बीमारी के प्रमुख कारण वायु प्रदूषण और तंबाकू का सेवन हैं।

यह नया यूरिन टेस्ट कैंसर के इलाज में बड़ा बदलाव ला सकता है। समय पर पता लगने से न केवल मरीज की जान बच जाएगी बल्कि इलाज का खर्च भी कम होगा। वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि इस तकनीक का इस्तेमाल भविष्य में हर तरह के कैंसर का पता लगाने और उसकी रोकथाम में किया जा सकेगा।