क्या वसा कोशिकाओं से मधुमेह का इलाज संभव है? वैज्ञानिकों ने मोटापे और चीनी के बीच अनोखा संबंध खोजा है!

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मोटापे और टाइप 2 डायबिटीज के बढ़ते मामलों ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों को चिंता में डाल दिया है। इस बीच, कैलिफोर्निया-लॉस एंजिल्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने वसा कोशिकाओं के माध्यम से एक बड़ा रहस्य उजागर किया है। शोधकर्ताओं ने दिखाया कि कैसे मोटापा टाइप 2 डायबिटीज के जोखिम को बढ़ाता है और कैसे यह उपचार के नए रास्ते खोल सकता है।

शोध के अनुसार, मोटापा शरीर में राइबोसोमल कारकों नामक प्रमुख सेलुलर बिल्डिंग ब्लॉक के उत्पादन को बाधित करता है। इन कारकों की कमी के कारण, वसा स्टेम कोशिकाएं नई, कार्यात्मक वसा कोशिकाओं को बनाने में असमर्थ होती हैं। नतीजतन, ऊर्जा फंस जाती है और वसा कोशिकाएं आकार में बढ़ जाती हैं। यह प्रक्रिया टाइप 2 मधुमेह के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शोध का नेतृत्व करने वाले डॉ. क्लाउडियो विलानुएवा ने कहा कि वसा ऊतक को अक्सर हानिकारक माना जाता है, लेकिन यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

 

नई दवा में मोटे और शुगर-प्रवण चूहे शामिल थे। इन चूहों की वसा कोशिकाएँ दुबले चूहों की तुलना में चार से पाँच गुना बड़ी थीं। वैज्ञानिकों ने चूहों को रोसिग्लिटाज़ोन नामक दवा दी, जिसने उनके राइबोसोमल कारक को सामान्य स्तर पर वापस ला दिया। इससे उनकी वसा स्टेम कोशिकाओं को नई, छोटी और बेहतर कार्यात्मक वसा कोशिकाएँ बनाने में मदद मिली। इस प्रक्रिया ने न केवल चूहों के चयापचय में सुधार किया, बल्कि टाइप 2 मधुमेह को भी समाप्त कर दिया। हालाँकि चूहे मोटे ही रहे, लेकिन उनका रक्त शर्करा स्तर सामान्य हो गया।

 

भविष्य की उम्मीदें  सेल रिपोर्ट्स में प्रकाशित यह अध्ययन टाइप 2 डायबिटीज़ और अन्य पुरानी बीमारियों के उपचार में नई दिशा प्रदान कर सकता है। वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि वसा कोशिकाओं की भूमिका को समझकर भविष्य में डायबिटीज़ का प्रभावी उपचार संभव हो सकता है।