जबलपुर, 25 नवंबर (हि.स.)। हाईकोर्ट में सोमवार को ओबीसी आरक्षण से संबंधित 83 याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इन याचिकाओं में शासन द्वारा 27% ओबीसी आरक्षण लागू करने और उससे संबंधित आदेशों को चुनौती दी गई है। मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की डबल बेंच ने इस मुद्दे पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ताओं को सभी प्रश्नों के जवाब प्रस्तुत करने के लिए 2 सप्ताह का समय दिया है। हाईकोर्ट ने इस मामले में 4 अगस्त 2023 को एक अंतरिम आदेश जारी करते हुए 27% आरक्षण पर रोक लगा दी थी। यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू हुआ और इसके परिणामस्वरूप सभी भर्तियों और प्रवेश प्रक्रियाओं में ओबीसी आरक्षण पर स्टे आर्डर जारी किया था।
ओबीसी आरक्षण से जुड़े मामले सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित हैं पर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा हाल ही में दिए गए आदेश के अनुसार जिन मामलों में स्थगन आदेश जारी नहीं हुआ है। उनकी सुनवाई हाईकोर्ट में की जा सकती है। इस मामले को सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों स्तरों पर उठाया गया है, जिससे यह प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है। मध्य प्रदेश सरकार की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने हाईकोर्ट में यह दलील दी कि 27% ओबीसी आरक्षण अभी भी विधिसम्मत है और इस पर रोक लगाना अनावश्यक है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि याचिका क्रमांक 18105 इस मामले से संबंधित नहीं है। और उक्त याचिका पर मिले स्थगन आदेश के आधार पर सभी भर्तियों में आरक्षण का लाभ न देना नियम विरुद्ध है। उन्होंने तर्क दिया कि बिना किसी विधायी या प्रशासनिक संशोधन के ओबीसी आरक्षण को रोकना आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के अधिकारों का हनन है।
ठाकुर ने यूथ फॉर इक्वलिटी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि यह संगठन एक राजनीतिक मंच है और संविधान के तहत राजनीतिक संगठनों को सरकारी नीतियों को चुनौती देने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कोर्ट से इन याचिकाओं को खारिज करने की अपील की। याचिकाकर्ताओं को जारी हुए नोटिस सुनवाई के दौरान तर्कों को गंभीरता से सुनने के बाद जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डबल बेंच ने याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के लिए दो हफ्ते का समय दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी।