एचपीटीडीसी के घाटे वाले होटलों को बंद करने के आदेशों पर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने लगाई रोक

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शिमला, 25 नवंबर (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट से हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम (एचपीटीडीसी) को बड़ी राहत मिली है। एचपीटीडीसी के घाटे में चल रहे होटल सोमवार से बंद होने थे, लेकिन हाईकोर्ट ने इन्हें बंद करने पर रोक लगा दी है। एचपीटीडीसी के घाटे वाले सभी 18 होटल अब खुले रहेंगे। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इन होटलों को बंद करने के एकल पीठ के फैसले पर रोक लगाई है।

न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और राकेश कैंथला की खंडपीठ ने सोमवार को मामले की सुनवाई करते हुए ये आदेश जारी किए। मामले की अगली सुनवाई दो जनवरी 2024 को होगी। एचपीटीडीसी की ओर से पूर्व महाधिवक्ता श्रवण डोगरा ने मामले की पैरवी की।

उन्होंने बताया कि खंडपीठ ने एचपीटीडीसी के घाटे वाले होटलों को बंद करने के आदेश पर रोक लगाई है। एचपीटीडीसी अब घाटे वाले होटलों सहित अपनी सभी सम्पतियों को अपने तरीके से चला सकता है।

बता दें कि इससे पहले 19 नवम्बर को हाईकोर्ट के न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की एकलपीठ ने 40 फीसदी से नीचे ऑक्यूपेंसी वाले 18 होटलों को 25 नवंबर को बंद करने के आदेश दिए थे। इस फैसले में संशोधन के लिए एचपीटीडीसी ने हाईकोर्ट में आवेदन किया था। इस पर एकलपीठ ने इनमें से नौ होटलों को 31 मार्च तक संचालन की सशर्त छूट दे दी थी। एचपीटीडीसी के सेवानिवृत्त कर्मियों को बकाया देनदारियों का भुगतान न होने पर एकलपीठ ने ये फरमान दिए थे। इन होटलों के मामले में एचपीटीडीसी ने हाईकोर्ट की खंडपीठ में अपील दायर की है।

अब खुले रहेंगे एचपीटीडीसी के घाटे वाले सभी 18 होटल

एचपीटीडीसी के पैलेस होटल चायल, हाेटल गीतांजलि डलहौजी, बाघल दाड़लाघाट, धौलाधार धर्मशाला, कुनाल धर्मशाला, कश्मीर हाउस धर्मशाला, एप्पल ब्लॉस्म फागू शिमला, होटल चंद्रभागा, केलंग होटल देवदार खजियार, हाेटल गिरिगंगा खड़ापत्थर शिमला, हाेटल मेघदूत क्यारीघाट, होटल सरवरी कुल्लू, होटल लॉग हट्स मनाली, होटल हिडिंबा कॉटेज मनाली, होटल कुंजुम मनाली, होटल भागसू मैक्लोडगंज, होटल दि कैसल नग्गर कुल्लू व होटल शिवालिक परवाणू शामिल हैं।

हाईकोर्ट की एकलपीठ ने घाटे वाले होटलों को बताया था सफेद हाथी

हाईकोर्ट की एकलपीठ ने उपरोक्त होटलों को सफेद हाथी करार दिया था। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा था कि ये राज्य पर बोझ हैं। एचपीटीडीसी अपनी संपत्तियों का उपयोग लाभ कमाने के लिए नहीं कर पाया है और ऐसे में इन संपत्तियों का संचालन जारी रखना स्वाभाविक रूप से राज्य के खजाने पर बोझ के अलावा और कुछ नहीं है।