मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के साथ सत्तारूढ़ महायुति के सत्ता में लौटने के साथ ही विपक्षी महाविकास अघाड़ी की स्थिति खराब हो गई है. इस चुनाव ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्य में विपक्षी नेता राहुल गांधी और उनकी टीम का संविधान खतरे में है, यह बात काम नहीं आई है। इसी नैरेटिव के दम पर इंडी अलायंस ने लोकसभा चुनाव में 48 में से 30 सीटें जीतीं. यानी राहुल गांधी की जीत का फॉर्मूला महज छह महीने में ही फेल हो गया है. महाराष्ट्र में लोकसभा में शानदार प्रदर्शन के बाद कांग्रेस अति आत्मविश्वास में थी. यह उनके लिए खतरनाक साबित हुआ है.
राहुल गांधी ने राज्य में सभी चुनावी सभाओं में यह मुद्दा उठाया कि संविधान खतरे में है. इसके अलावा उन्होंने आरक्षण को पचास फीसदी से बढ़ाने की भी बात कही और जातीय जनगणना की भी वकालत की. उनका तर्क था कि जितनी अधिक जनसंख्या, उतनी ही अधिक उनकी हिस्सेदारी होनी चाहिए।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में दलितों की संख्या करीब बारह फीसदी है जबकि ओबीसी 38 फीसदी हैं. वहीं आदिवासी समुदाय नौ फीसदी और मराठा समुदाय 28 फीसदी है. लोकसभा चुनाव प्रचार में जब वह हाथ में लाल किताब लेकर कह रहे थे कि भाजपा 400 सीटें हासिल कर संविधान को नष्ट करना चाहती है और दलितों व पिछड़ों का आरक्षण खत्म करना चाहती है, तो लोगों ने उनकी बातों को गंभीरता से लिया और पूरा समर्थन दिया. इंडी गठबंधन.
लेकिन जब उन्होंने यही बातें महाराष्ट्र के चुनाव प्रचार में कही तो लोगों के बीच उनका प्रभाव नगण्य रहा. लोकसभा की 48 में से 30 सीटें इंडी गठबंधन को देने वालों ने विधानसभा में पूरा समर्थन दिया. जाहिर है कि जनता ने राष्ट्रीय स्तर पर इस बात को स्वीकार कर लिया कि राहुल और कांग्रेस का संविधान और आरक्षण खतरे में है, लेकिन स्थानीय मुद्दों की अनदेखी और स्थानीय नेतृत्व की कमी कांग्रेस की हार का कारण बनी.