झारखंड में 24 साल का राजनीतिक रिकॉर्ड टूटने वाला है. क्योंकि झारखंड में पहली बार कोई पार्टी मजबूती के साथ सत्ता में वापसी कर रही है. अब तक के रुझान की बात करें तो हेमंत सोरेन गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिलता दिख रहा है. झारखंड 81 में से 50 सीटों पर आगे चल रही है. 10 सीटों पर बढ़त का अंतर 10 हजार वोटों से ज्यादा है. फिर सवाल उठता है कि झारखंड में बड़े पैमाने पर प्रचार के बावजूद बीजेपी सत्ता में नहीं आ सकी. तो फिर आइए जानते हैं क्या हो सकता है.
मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं
भारतीय जनता पार्टी के पास स्थानीय स्तर पर कोई मजबूत चेहरा नहीं था. पार्टी के पास सीएम फेस के दो नेता (बाबू लाल मरांडी और चंपई सोरेन) थे. दिलचस्प बात यह है कि दोनों ने दलबदल कर लिया
थे चंपई विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए थे.
महिलाएं एक अलग वोट बैंक
जुलाई 2024 में कुर्सी संभालने के बाद हेमंत सोरेन ने महिला वोट बैंक पर फोकस किया. सोरेन ने महिलाओं के लिए मैया सम्मान योजना लागू की. इस योजना के तहत प्रत्येक महिला के बैंक खाते में हर महीने 1000-1000 रुपये जमा किये जाते थे.
आदिवासियों में आक्रोश
झारखंड के आदिवासी बहुल इलाकों में हेमंत एकतरफा जीतते नजर आ रहे हैं. पूरे चुनाव में हेमंत आदिवासी अस्मिता का मुद्दा उठा रहे थे. उनकी पार्टी ने कहा कि पूर्ण बहुमत होने के बावजूद हेमंत को पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं करने दिया गया। खतियानी और आरक्षण जैसे मुद्दों पर भी हेमंत की पार्टी बीजेपी को घेर रही थी. दरअसल, इन मुद्दों पर विधानसभा से प्रस्ताव पारित हो चुका है, लेकिन राज्यपाल ने इसे मंजूरी नहीं दी है. फिलहाल केंद्र में बीजेपी की ही सरकार है.
कुड़मी वोटर बिखर गये
झारखंड में कुड़मी मतदाता आजसू के साथ एकजुट थे, लेकिन इस बार जयराम महतो के आने से यह वोट बैंक उनसे छिटक गया. इस बार भी बीजेपी का सुदेश महतो के साथ समझौता था, लेकिन सुदेश महतो की पार्टी को सिर्फ 2-3 सीटों पर ही बढ़त मिलती दिख रही है. खासकर कोल्हान और कोयलांचल इलाके में. कुड़मी मतदाताओं के बिखरने से हेमंत का कोर मतदाता मजबूत हो गया है.
बड़े-बड़े नेता फेल हो गए
बोकारो के धुरंधर बिरंची नारायण पिछड़ते नजर आ रहे हैं. देवघर के नारायण दास का भी कुछ ऐसा ही हाल है. गोड्डा के अमित मंडल भी काफी पीछे हैं. पीछे जगन्नाथपुर के मधु कोड़ा की पत्नी भी दिख रही हैं. यानी कुल मिलाकर जिन सीटों पर बीजेपी ने बड़े नेताओं को तैनात किया था. पार्टी वहां फेल साबित हो रही है. बड़े नेताओं का सीट न जीतना भी बीजेपी के लिए झटका है.