कानपुर,13 नवम्बर(हि.स.)। पशुओं में खुरपका,मुंहपका रोग विषाणु जनित रोग है। इस रोग का प्रभाव गौ वंशीय पशुओं में अधिक होता है। सही समय पर उपचार करना बहुत आवश्यक है। यह जानकारी बुधवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दिलीप नगर पर दो दिवसीय प्रशिक्षण समापन के मौके पर पशु पालन वैज्ञानिक डॉ.शशिकांत ने दी।
उन्होंने बताया कि पशुओं में इस रोग के प्रभाव के कारण मुँह से अत्यधिक लार का टपकना, (रस्सी जैसा)जीभ तथा तलवों पर छाले का उभरना जो बाद में फट कर घाव में बदल जाते हैं।
जीभ की सतह का निकल कर बाहर आ जाना एवं थूथनों पर छाले का उभरना। खुरों के बीच में घाव होना, जिसकी वजह से पशु का लंगड़ा कर चलना या चलना बंद कर देता है। यह इसके प्रमुख लक्षण है।
इस रोग का विशेष उपचार नहीं है फिर भी उनका उचित देखभाल जिसके अंतर्गत लक्षणों के आधार पर उपचार एंटीबायोटिक, दर्द बुखार रोकने की दवाएं (एनालजेसिक) तथा मुंह के व खुरों के छाले इत्यादि की एंटीबायोटिक घोल से धुलाई करें, नरम व सुपाच्य भोजन की आपूर्ति व रोगी पशुओं एक जगह रखना इत्यादि किया जा सकता है। इस रोग के प्रभावी रोकथाम के लिए खुरपका मुंहपका की पॉलीवैलेंट वैक्सीन द्वारा टीकाकरण ही उचित उपाय है।
डाक्टर कांत ने बताया की इस रोग का टीका प्रति वर्ष 6 महीने के अंतराल पर मुख्य रूप से जनवरी से फरवरी व जुलाई से अगस्त में अवश्य लगवाना चाहिए। जिससे इस रोग से अपने पशुओं को बचाया जा सके।
इस अवसर पर मृदा वैज्ञानिक डॉक्टर खलील खान, उद्यान वैज्ञानिक डॉक्टर अरुण कुमार सिंह,कृषि प्रसार वैज्ञानिक डॉक्टर राजेश राय तथा भगवान पाल, गौरव शुक्ला एवं शुभम यादव का कार्यक्रम सफल बनाने की विशेष सहयोग रहा।