मंडी, 12 नवंबर (हि.स.)। मंडी के पड्डल मैदान में हो रहे नौ दिवसीय श्रीरामार्चा महायज्ञ व श्रीराम कथा के सातवें दिन श्री मानस पीठ खजुरीताल जिला मैहर मध्य प्रदेश से आए कथा व्यास श्रीमानस पीठाधीश्वर जगतगुरु श्री रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामललाचार्य जी महाराज ने श्रीराम कथा का आरंभ श्रीराम नाम संकीर्तन से किया। तदोपरांत श्री सीता राम और लक्ष्मण वन में ऋषि मुनियों से मिलते हुए वाल्मिकी से मिले और रहने का स्थान पूछा। इस पर ऋषि वाल्मिकी ने चित्रकूट रहने को कहा। इसके पश्चात बहन शांता और श्रृंगा ऋषि का प्रसंग सुनाया।
मंत्री सुमंत ने राजधानी अयोध्या पहुंचे, जहां दशरथ शैय्या पर पड़े हुए थे। दोनों का वार्तालाप हुआ। कुछ समय पश्चात राजा दशरथ ने श्रीराम के वियोग में प्राण त्याग दिए। इसकी सूचना भरत और शत्रुघ्न को उनके ननिहाल में पहुंचाई, इसके पश्चात भरत का अयोध्या में प्रवेश हुआ और सारा हाल जान कर बहुत दुखी हुए और मंथरा व कैकयी को बहुत कोशा। सरयू नदी के तट पर राजा दशरथ का अंतिम संस्कार किया गया। क्रिया कर्म के बाद मंत्रीमंडल की बैठक में भरत को राजा बनाने का प्रस्ताव पारित हुआ, लेकिन भरत श्रीराम को मनाने के लिए वन जाने को तैयार हुए।
इसके देख कर राज्य की सारी प्रजा भी वन की ओर कूच कर गए। इस बात का पता चलते ही निषादराज तैयार हो गए कि कहीं युद्ध न करना पड़े, लेकिन निषादराज को भरत ने हृदय से लगा लिया। इसके पश्चात भरत और श्रीराम का मिलन हुआए जिसका वर्णन करते हुए श्रद्धालु रो पड़े। वहीं भरत ने श्रीराम के अयोध्या न आने तक नंदीग्राम में रहने की प्रतिज्ञा की। इस तरह से शुरूपनखा का चित्रकूट में श्रीराम और लक्ष्मण को परेशान किया और उसके नाक कान काट डाले। इसको लेकर शुरूपनखा रावण के दरबार में पहुंची।