किसे कहते हैं ‘ट्रॉफी हसबैंड’ और ‘ट्रॉफी वाइफ’? जानिए क्यों लोग चुनते हैं ऐसे लाइफ पार्टनर

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ट्रॉफी हसबैंड और ट्रॉफी वाइफ मीनिंग: मौजूदा समय में रिश्तों के नए-नए रूप देखने को मिल रहे हैं, जो पहले के समय में इतने आम नहीं थे। आपने सुना होगा कि आजकल ‘ट्रॉफी हसबैंड’ और ‘ट्रॉफी वाइफ’ का कॉन्सेप्ट खूब सुनने को मिल रहा है। लेकिन क्या आप इनका असली मतलब जानते हैं और लोग ऐसे लाइफ पार्टनर क्यों चुनना पसंद करते हैं?

‘ट्रॉफी पति’ और ‘ट्रॉफी पत्नी’ का क्या अर्थ है?

‘ट्रॉफी हसबैंड’ और ‘ट्रॉफी वाइफ’ ऐसे नाम हैं जो लाइफ पार्टनर को दिए जाते हैं जिन्हें स्टेटस सिंबल के तौर पर देखा जाता है। ऐसे शब्दों को अक्सर अपमानजनक माना जाता है। जिस तरह ट्रॉफी को सजावट के तौर पर रखा जाता है या गर्व की बात माना जाता है, उसी तरह ‘ट्रॉफी हसबैंड’ और ‘ट्रॉफी वाइफ’ का भी महत्व है। ऐसे पार्टनर अक्सर दिखने में आकर्षक होते हैं जो अमीर या प्रभावशाली लोगों से शादी करते हैं।

लोग ट्रॉफी पार्टनर क्यों चुनते हैं?

1.  ऐसे पार्टनर को चुनने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। सबसे पहली वजह है सामाजिक स्थिति। कई बार लोग खूबसूरत या बेहद आकर्षक पार्टनर की चाहत रखते हैं ताकि समाज में उनका महत्व या रुतबा बढ़े। समाज में आकर्षक और स्टाइलिश पार्टनर का होना सफलता और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। व्यापार, राजनीति और सामाजिक हलकों में यह आम धारणा है कि ऐसा पार्टनर आपकी स्थिति और प्रतिष्ठा बढ़ाता है।

2.  दूसरा कारण व्यक्तिगत संतुष्टि हो सकता है। कई लोग अपने जीवनसाथी के सुंदर या फिट होने पर खुद को भाग्यशाली मानते हैं। इससे उन्हें अपने जीवन में खुशी और गर्व महसूस होता है। साथ ही, कुछ लोग ऐसा साथी चुनते हैं जो हर पार्टी, इवेंट और सामाजिक समारोह में आकर्षण का केंद्र बन जाता है।

ऐसे रिश्ते का क्या मतलब है?

‘ट्रॉफी पति’ और ‘ट्रॉफी पत्नी’ के रिश्ते में सवाल उठता है कि क्या ये रिश्ते वास्तविक भावनाओं पर आधारित हैं या फिर यह दिखावा मात्र है? वैसे तो हर रिश्ते का आधार अलग होता है, लेकिन अक्सर ऐसे रिश्तों में आकर्षण और सामाजिक स्थिति का महत्व अधिक होता है।

इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है

भले ही आप शादी के लिए ट्रॉफी पार्टनर चुनें, लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि आपका रिश्ता सिर्फ स्टेटस सिंबल न हो, बल्कि आप अपने पति या पत्नी से भावनात्मक रूप से जुड़े हों, आप दोनों एक-दूसरे का सम्मान करें और कभी एक-दूसरे को दुख न पहुँचाएँ।