बुंदेली लोकनृत्य दिवारी की धूम,दीपावली पर अनोखा नृत्य

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हमीरपुर, 01 नवम्बर (हि.स.)। दीपावली के पर्व पर लट्ठमार दिवारी नृत्य का आयोजन होता है, जो हर साल लोगों के लिए एक खास आकर्षण होता है। यह नृत्य मथुरा के बरसाना की लट्ठमार होली से भले ही थोड़ा अलग हो, लेकिन इसका जोश और रोमांच बिल्कुल वैसा ही है। दिवारी नृत्य में कलाकार अपने हाथों में बड़ी-बड़ी लाठियां लेकर ढोलक की थाप पर थिरकते हैं और इसे देखना मानो किसी जंग के मैदान को देखने जैसा लगता है। हर साल की भांति इस साल भी दीपावली पर बुंदेली लोकनृत्य दिवारी की धूम देखी गई।

दीपावली के मौके पर गाँव की चौपालों पर जब ये दिवारी नृत्य किया जाता है, तो देखने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इस नृत्य में कलाकार अपनी वीरता और युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते हैं। समाजसेवी सुनील त्रिपाठी बताते हैं कि यह परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के समय से चली आ रही है, जब उन्होंने व्रजवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था। इसे मल्हार दिवारी के नाम से भी जाना जाता है, और लोग इसे अपने आराध्य श्रीकृष्ण के प्रति आस्था का प्रतीक मानते हैं। दिवारी नृत्य बुंदेलखंडी संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा है।

इस नृत्य में अद्भुत जिमनास्टिक कलाएँ भी दिखाई देती हैं, जिनसे यह कला और खास बन जाती है। अलग ढंग से बजने वाली ढोलक की थाप पर लोग खुद-ब-खुद थिरकने लगते हैं। मज़बूत लाठियां जब नृत्य करने वालों के हाथ में होती हैं, तो यह पूरे बुंदेलखंड की वीरता और परंपरा का प्रतीक बन जाता है। समाजसेवी नत्थू सिंह का कहना है कि कृष्ण भगवान ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तभी से यह परंपरा बुंदेलखंड में प्रचलित हुई। बुंदेलखंड के इस क्षेत्र को वीरभूमि के नाम से जाना जाता है और यहाँ के लोग हर पर्व पर अपनी वीरता का प्रदर्शन लाठी-डंडों के माध्यम से करते हैं। रीवन गाँव में दिवारी नृत्य का आयोजन बड़े जोश और उत्साह के साथ किया जाता है, और यह गाँव इस नृत्य के लिए पूरे क्षेत्र में जाना जाता है।