रतन टाटा: जन्म से लेकर सफल बिजनेसमैन बनने तक की कहानी

Hagqr5wpamyahikfdih4zbvf6mwhvcatayzvovug

75 साल की उम्र में रतन टाटा ने टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद से रिटायर होने का फैसला किया और साइरस मिस्त्री को अगला चेयरमैन नियुक्त किया। हालाँकि, कुछ समय बाद मिस्त्री को हटा दिया गया और एन. चन्द्रशेखरन को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। रतन टाटा को उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिल चुके हैं। उन्हें 2000 में पद्म भूषण और 2008 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

रतन टाटा का नाम भारत के सबसे सम्मानित और सफल व्यवसायियों में से एक है। उनका जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में हुआ था। हाल ही में 86 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनके पिता नवल टाटा और माता सूनी टाटा थीं। जब रतन टाटा केवल 7 वर्ष के थे, तब उनके माता-पिता का तलाक हो गया, जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने किया। रतन टाटा को अपनी दादी से बहुत प्यार था और उन्होंने उन्हें बेहद प्यार और देखभाल से पाला।

शुरुआती पढ़ाई मुंबई में हुई

रतन टाटा की प्राथमिक शिक्षा मुंबई में हुई, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए वे अमेरिका चले गये। उन्होंने कॉर्नेल विश्वविद्यालय से वास्तुकला में डिग्री हासिल की और फिर 1975 में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में एक उन्नत प्रबंधन कार्यक्रम पूरा किया। इन अनुभवों ने न केवल उन्हें बेहतर व्यावसायिक दृष्टिकोण दिया, बल्कि उन्हें दुनिया के सबसे प्रसिद्ध उद्यमियों में से एक बनने में भी मदद की।

करियर की शुरुआत टाटा स्टील से की

रतन टाटा ने अपने करियर की शुरुआत टाटा स्टील में एक प्रशिक्षु के रूप में की थी। उन्होंने खदानों और ब्लास्ट फर्नेस में भी काम किया है, जिससे साबित होता है कि उन्हें किसी भी काम से शर्म नहीं है। उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण के कारण, उन्हें नेल्को और एम्प्रेस मिल्स जैसी टाटा समूह की कई महत्वपूर्ण कंपनियों का प्रभार दिया गया। 1991 में रतन टाटा को टाटा ग्रुप का चेयरमैन बनाया गया और उनके नेतृत्व में टाटा ग्रुप ने कई बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं।

क्या इस डील से टाटा को पहचान मिली?

रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा। उन्होंने जगुआर, लैंड रोवर, टेटली टी और कोरस स्टील जैसी कंपनियों का अधिग्रहण किया। ये कदम न केवल टाटा समूह के विस्तार का प्रतीक हैं, बल्कि भारत को विश्व व्यापार मंच पर नई ऊंचाइयों पर ले गए हैं। रतन टाटा का सबसे मशहूर प्रोजेक्ट ‘टाटा नैनो’ था, जिसे 2008 में लॉन्च किया गया था। टाटा नैनो का सपना था कि हर भारतीय अपने सपनों की कार खरीद सके। यह दुनिया की सबसे सस्ती कार थी, जिसे खासतौर पर मध्यम वर्ग के लोगों के लिए डिजाइन किया गया था।

जब देश ने किया टाटा को सलाम

75 साल की उम्र में रतन टाटा ने टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद से रिटायर होने का फैसला किया और साइरस मिस्त्री को अगला चेयरमैन नियुक्त किया। हालाँकि, कुछ समय बाद मिस्त्री को हटा दिया गया और एन. चन्द्रशेखरन को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। रतन टाटा को उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिल चुके हैं। उन्हें 2000 में पद्म भूषण और 2008 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। ये पुरस्कार देश के प्रति उनके अमूल्य योगदान का प्रतीक हैं। रतन टाटा न सिर्फ एक सफल बिजनेसमैन हैं बल्कि एक परोपकारी भी हैं। उन्होंने टाटा ट्रस्ट के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनका जीवन और कार्य साबित करता है कि सच्ची सफलता समाज के लिए योगदान देने में है।