भारत में सेब किसान: भारतीय सेब किसान बुरी तरह से पीड़ित हैं। हिमाचल प्रदेश में अडानी ग्रुप समेत निजी कंपनियां उच्च गुणवत्ता वाला सेब 80 रुपये प्रति किलो खरीद रही हैं. सेब खरीदने वाली सबसे बड़ी कंपनी अदानी एग्रो फ्रेश लिमिटेड ने पिछले साल सेब का खरीद मूल्य 95 रुपये प्रति किलो तय किया था, लेकिन इस बार सेब 15 रुपये कम दर पर खरीदा जा रहा है.
इसके साथ ही आम ग्राहकों को भी बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. इन दिनों बाजारों में अच्छी क्वालिटी के सेब का औसत रेट 120 से 140 रुपये प्रति किलो है. यानी कंपनियां किसानों से 80 रुपये प्रति किलो के हिसाब से उच्च गुणवत्ता वाला सेब खरीद रही हैं और ग्राहकों को 140 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेच रही हैं. इसके साथ ही भारतीय किसानों को विदेश से आने वाले सेब से भी नुकसान हो रहा है.
इसलिए, भारतीय सेब किसानों ने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान से कहा है कि सेब का न्यूनतम आयात मूल्य (एमआईपी) 90 रुपये प्रति किलोग्राम होना चाहिए क्योंकि घरेलू किसानों की लागत इसी के आसपास आती है। सरकार द्वारा सेब का वर्तमान एमआईपी 50 रुपये प्रति किलोग्राम निर्धारित किया गया है, जिसके कारण देश में ईरान और तुर्की से सस्ते दामों पर बड़ी मात्रा में सेब आयात किया जा रहा है।
इसके साथ ही चीनी सेब संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के रास्ते भारत आ रहे हैं. यूएई में सेब का उत्पादन नहीं होता है. फिर भी वहां से आयात का सीधा मतलब यह है कि चीनी सेब भारत आ रहे हैं। इसी तरह दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौते (साफ्टा) की आड़ में बड़ी मात्रा में ईरानी सेब अफगानिस्तान के रास्ते भारत आ रहे हैं।
कम एमआईपी और आयात शुल्क के कारण घरेलू सेब उत्पादकों को अस्तित्व के संकट का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में घरेलू बाजार में हिमाचल की हिस्सेदारी घटी है जो चिंताजनक है। ये बातें प्रोग्रेसिव ग्रोअर्स एसोसिएशन ने शिवराज सिंह को लिखे पत्र में कही हैं. एसोसिएशन की ओर से यह पत्र 5 सितंबर 2024 को भेजा गया है.
एसोसिएशन की ओर से लिखे गए पत्र में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने 2023 में विदेशी सेब के लिए 50 रुपये प्रति किलो एमआईपी तय की थी. इस फैसले के बाद भारत में ईरान, यूएई, अफगानिस्तान और तुर्की जैसे देशों से बड़ी मात्रा में सस्ते सेब का आयात किया जा रहा है. ये सेब भारतीय सेबों की तुलना में काफी कम दाम पर बिक रहे हैं, जिससे बागवानों को अपनी लागत निकालने में भी दिक्कत आ रही है.
एसोसिएशन ने कहा है कि भारत में सेब के उत्पादन में भी गिरावट देखी जा रही है. 2010-11 में देश में 2,891 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन हुआ, जो 2021-22 में घटकर 2,437 हजार मीट्रिक टन रह गया. हिमाचल प्रदेश की हिस्सेदारी भी 31 प्रतिशत से घटकर 26.42 प्रतिशत हो गई। इस बीच चीन और ईरान जैसे देश अपने सस्ते सेब भारतीय बाजार में बेच रहे हैं, जिससे भारतीय सेब उत्पादकों की परेशानी बढ़ गई है.
एसोसिएशन के अनुसार, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, अफगानिस्तान और तुर्की से आयातित सेब अब भारत के कुल सेब आयात का लगभग 65 प्रतिशत है। 2023-24 में इन देशों से 1,901 करोड़ रुपये का सेब भारत पहुंचा, जो देश की कुल मांग का करीब 11 फीसदी है. इससे भारतीय किसानों को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. पहले चीन भारत के लिए सेब का सबसे बड़ा निर्यातक था, लेकिन अब ईरान, यूएई और अफगानिस्तान के सस्ते सेब भारतीय बाजार पर हावी हैं।
एसोसिएशन के अध्यक्ष लोकिंदर बिष्ट ने कहा कि आयात शुल्क कम होने के कारण ईरान जैसे देशों का सेब बाजार में 60 से 70 रुपये प्रति किलो उपलब्ध है. उन्होंने कहा कि स्थानीय सेब उत्पादक ईरान से आने वाले सस्ते सेब से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि उत्पादन, कटाई, पैकिंग और परिवहन की लागत 55 से 60 रुपये प्रति किलोग्राम है।
बिष्ट ने कहा कि यदि सेब आयात किया जा रहा है तो नियमानुसार इतनी कम कीमत पर इसे बेचना संभव नहीं है। एमआईपी लागू होने के बाद सेब 50 रुपये प्रति किलो से कम दाम पर भारत नहीं पहुंच सकता और इस पर 50 फीसदी आयात शुल्क जोड़ने के बाद इसकी कीमत 75 रुपये प्रति किलो हो जाती है. इसके बाद व्यापारियों का मुनाफा जोड़कर इसे 100 रुपये प्रति किलो से कम नहीं बेचा जा सकता.
इसके बावजूद ईरानी सेब सस्ते दाम पर बिक रहा है, जो किसी घोटाले का संकेत है. उन्होंने कहा कि आयात शुल्क से बचने के लिए या तो इन देशों से आने वाले फलों की कीमतें कम दिखाई जा रही हैं या फिर उन्हें दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार समझौते (साफ्टा) के तहत आयात किया जा रहा है, जहां आयात शुल्क लागू नहीं है.
बिष्ट ने कहा कि सेब उत्पादकों ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर अपील की है कि अगर तुरंत कोई सुधारात्मक कदम नहीं उठाया गया तो बढ़ती लागत और ईरान से सस्ते आयात के कारण पूरी सेब अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाएगी. उन्होंने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए उचित कदम उठाएगी.