हर कोई अपनी आय, जरूरतों, खर्चों आदि के अनुसार अपना निश्चित बजट तय करके योजना बनाता है। इस योजना में विभिन्न वस्तुओं, जरूरतों, खरीदारी, मनोरंजन सुविधाओं और बुनियादी जरूरतों को प्राथमिकता दी जाती है। लेकिन अक्सर देखा जाता है कि हम अपनी विभिन्न जरूरतों और आवश्यकताओं के अनुसार धन का प्रबंधन तो कर लेते हैं, लेकिन अपने बौद्धिक और मानसिक विकास के लिए इस पर ध्यान देने में लापरवाही बरतते हैं।
जब भी हम बाजार में खरीदारी करते हैं तो सस्ती-महंगी हर चीज तो खरीद लेते हैं, लेकिन अच्छी और जीवनदायी किताबें, मैगजीन आदि खरीदने से परहेज करने लगते हैं। अक्सर यह भी देखा जाता है कि बीस से पचास लाख रुपये में बना घर या मकान अन्य भौतिक सुख-सुविधाओं से तो भरपूर होता है, लेकिन उसमें किताब नहीं मिलती।
घर में मौजूद किताबें, पत्रिकाएं, समाचार पत्र आदि परिवार के सदस्यों के बौद्धिक स्तर, उनकी सोच और उनके ज्ञान का प्रतिबिंब होते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अच्छी किताबें और पत्रिकाएँ बौद्धिक कल्याण, बौद्धिक उत्कर्ष और मानसिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अच्छी किताबें और पत्रिकाएँ हमारी शब्दावली भी बढ़ाती हैं।
साथ ही वे हमें देश, विदेश, इतिहास, वर्तमान समय के बारे में अधिक जागरूक कर बुद्धिमान नागरिक बनाते हैं। अच्छी पुस्तकें और अच्छी पत्रिकाएँ पढ़कर भी हम अच्छा पद प्राप्त कर सकते हैं। विद्वान भी कहते हैं कि किताबें पढ़ना मनोरंजन का एक बड़ा साधन है। हमारे महान विद्वान, महापुरुष, बुद्धिजीवी और देशभक्त किसी न किसी तरह अच्छी पुस्तकों, अच्छी पत्रिकाओं, समाचार पत्रों आदि से जुड़े हुए थे।
किताबें जहां हमारा मनोरंजन करती हैं वहीं हमें बड़ी से बड़ी समस्या को सुलझाने का रास्ता भी दिखाती हैं। इसलिए जरूरी है कि हम अपने बजट में अच्छी किताबों, अच्छी मैगजीन और अखबारों को जगह दें। यदि घर में एक निर्दिष्ट स्थान पर छोटी या बड़ी लाइब्रेरी बनाई जाए तो यह सोने की बात होगी।
कभी भी यह नहीं सोचना चाहिए कि किताबें पढ़ना समय की बर्बादी है, क्योंकि किताबों से मिला प्यार और उन्हें दिया गया समय कभी-कभी हमें जीवन में कुछ न कुछ दे जाता है।