आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला व्यवहारिक नहीं: राधाकृष्ण

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पलामू, 30 अगस्त (हि.स.)। छतरपुर-पाटन के पूर्व विधायक राधाकृष्ण किशोर ने शुक्रवार को कहा कि आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला व्यवहारिक नहीं है।

किशोर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि राज्य सरकार को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जाति-जनजाति के अंदर वंचित वर्ग और सम्पन्न वर्ग के बीच वर्गीकरण कर अत्यंत पिछड़े और कमजोर लोगों के लिए आरक्षण में प्राथमिकता निर्धारित करने का अधिकार है। कोर्ट के इस फैसले का लब्बो-लुआब यह है कि अनुसूचित जाति-जनजाति के वैसे सदस्य, जिन्होंने आरक्षण का लाभ प्राप्त कर क्लास-1 और क्लास-2 के पदों की नौकरियों का लाभ उठा चुके हैं, उन्हें ‘‘क्रिमीलेयर’’ की श्रेणी में रखते हुए उनकी जगह पर वंचितों को आरक्षण का लाभ दिया जाए। वैसे कोर्ट के फैसले का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आजाद के 77वें वर्ष में संविधान के एक अंग को इस बात की चिंता हुई कि अनुसूचित जाति-जनजाति के वंचितों को मुख्यधारा से जोड़ा जाए।

किशोर ने कहा कि कोर्ट के फैसले के अनुसार एक तरफ क्रिमीलेयर की श्रेणी में आने वाले लोगों को आरक्षण से वंचित किया जा रहा है तो दूसरी तरफ इन जातियों के अभ्यर्थी जब प्रतियोगिता परीक्षा में सामान्य जाति के अभ्यर्थियों से अधिक अंक प्राप्त करते हैं, तो भी उन्हें सामान्य जाति की श्रेणी में नहीं रखकर आरक्षित कोटे की श्रेणी में ही रखा जाता है तो फिर उन्हें क्रिमीलेयर की श्रेणी में रखने का क्या औचित्य है?

किशोर ने कहा कि कोर्ट के फैसले के पूर्व इस बात की भी समीक्षा हो जानी चाहिए थी कि अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग के क्रिमीलेयर के कितने ऐसे लोग हैं, जिनके परिजन भी आरक्षण का लाभ प्राप्त कर चुके हैं, जिस दिन लोकसभा के 131 और विधान सभा के 1169 आरक्षित सीटों की जगह सामान्य सीटों से अनुसूचित जाति-जनजाति के प्रत्याशी जीत कर आने लगेंगे, उस दिन आरक्षण की उपयोगिता पर विचार किया जाना चाहिए।