Income Tax Save: इन 10 तरीकों से करदाता बचा सकते हैं अपना टैक्स, यहां देखें आसान तरीका

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Income Tax Save: वित्त वर्ष 2023-24 यानी वित्त वर्ष 2023-24 खत्म होने में बस कुछ ही दिन और बचे हैं और आपको इस वित्त वर्ष के दौरान कमाई गई आय पर इनकम टैक्स देना होगा… साल भर की आय पर चुकाए गए टैक्स का हिसाब-किताब यानी ITR (Income Tax Return) आप जुलाई 2024 तक ही दाखिल करेंगे, लेकिन इनकम टैक्स 31 मार्च 2024 से पहले ही चुकाना होगा, वरना बाद में यानी ITR दाखिल करते समय ब्याज और पेनाल्टी देनी होगी… हम पहले भी कई ऐसी ही खबरों में कई बार बता चुके हैं कि इनकम टैक्स बचाने के लिए किन मदों या योजनाओं में निवेश किया जा सकता है, लेकिन आज हम आपको ऐसी टॉप 10 तरकीबें बता रहे हैं, जिनकी मदद से वो लोग अच्छा खासा इनकम टैक्स बचा सकते हैं, जो पुरानी टैक्स व्यवस्था यानी पुरानी इनकम टैक्स व्यवस्था के तहत ITR दाखिल करने जा रहे हैं…

आयकर बचाने के लिए शीर्ष 10 सुझाव

आयकर अधिनियम की धाराएं 80सी के तहत करें बचत: आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत आपके वेतन से कटने वाला प्रोविडेंट फंड, 80सीसीसी के तहत पेंशन फंड में जमा राशि, जीवन बीमा पॉलिसी के लिए जमा किया गया प्रीमियम, एनएससी यानी राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र में किया गया निवेश, पुरानी एनएससी पर अर्जित ब्याज, पीपीएफ यानी पब्लिक प्रोविडेंट फंड में किया गया निवेश, यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (यूलिप), बच्चों की ट्यूशन फीस, 5 साल से अधिक की सावधि जमा, इक्विटी लिंक्ड बचत योजना, होम लोन पर चुकाया गया मूलधन, सुकन्या समृद्धि योजना में किया गया निवेश आदि, इन योजनाओं में किए गए निवेश पर कुल 1,50,000 रुपये की छूट दी जाती है। यानी इन योजनाओं में निवेश की गई राशि में से 1,50,000 रुपये तक की राशि आपकी कर योग्य आय से काट ली जाती है।

एनपीएस खाता खोलें: धारा 80सी के तहत छूट के अलावा, आप राष्ट्रीय पेंशन योजना यानी एनपीएस में किए गए निवेश पर 50,000 रुपये (आयकर अधिनियम की धारा 80सीसीडी1बी) की कटौती पा सकते हैं। इसलिए, अगर आपके पास बचत के लिए पर्याप्त रकम है, तो इस योजना में निवेश जरूर करें। इससे न केवल हर साल किए गए निवेश पर आयकर की बचत होगी, बल्कि रिटायरमेंट के बाद पेंशन का सुख भी मिलेगा।

धारा 80TTA का रखें ध्यान: बहुत से लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि बैंकों के बचत खाते में जमा राशि पर मिलने वाला ब्याज भी टैक्सेबल होता है और उस पर भी इनकम टैक्स देना होता है। लेकिन आयकर अधिनियम की धारा 80TTA के तहत आपको बचत खाते में जमा राशि पर मिलने वाले 10,000 रुपये तक के ब्याज पर आयकर छूट मिलती है। सीधे शब्दों में कहें तो आपको अपने बचत खाते (या सभी बचत खातों) से मिलने वाले ब्याज में से 10,000 रुपये की राशि पर आप टैक्स छूट पा सकते हैं यानी इसे आप अपनी कर योग्य आय से घटा सकते हैं।
वैसे यहां याद रखने वाली बात यह है कि फिक्स्ड डिपॉजिट या रेकरिंग डिपॉजिट पर मिलने वाला ब्याज टैक्स फ्री नहीं होता है।

मकान किराया भत्ता (HRA) या होम लोन पर दिए जाने वाले ब्याज पर छूट: कई नौकरीपेशा लोग घर खरीदते समय होम लोन लेते हैं, जिसकी EMI नियमित रूप से चुकानी होती है। उस EMI में बैंक को दिए जाने वाले ब्याज की राशि में से 2,00,000 रुपये प्रति वर्ष तक की राशि पर टैक्स छूट का लाभ उठाया जा सकता है। यानी आप अपनी कुल EMI में जो ब्याज दे रहे हैं, उसमें से 2,00,000 रुपये की राशि टैक्स फ्री है। इसके अलावा जो लोग फिलहाल घर खरीदने में सक्षम नहीं हैं, और किराए के घर में रहते हैं, वे भी हाउस रेंट रसीद देकर इनकम टैक्स में छूट पा सकते हैं, जिसकी गणना करने का तरीका आप यहां पढ़ सकते हैं- HRA रिबेट या HRA छूट की गणना कैसे करें।

स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर छूट: अगर आपकी उम्र 60 साल से कम है और आप अपने लिए, जीवनसाथी या आश्रित बच्चों के लिए स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी का प्रीमियम भर रहे हैं तो आपको 25,000 रुपये तक की आयकर छूट मिल सकती है, लेकिन वहीं, अगर आपके माता-पिता की उम्र 60 साल से ज्यादा है और आप उनके लिए भी प्रीमियम भर रहे हैं तो आपको 50,000 रुपये तक की अतिरिक्त छूट मिल सकती है। आयकर अधिनियम की इस धारा के तहत अगर आपकी उम्र भी 60 साल से ज्यादा है तो आप अपने लिए 25,000 रुपये की जगह 50,000 रुपये तक के प्रीमियम पर छूट पा सकते हैं।

80DD पर भी मिलती है छूट: भगवान न करे, अगर आपके आश्रितों में से कोई दिव्यांग हो, लेकिन अगर है, तो आप उन पर किए गए खर्च पर आयकर छूट पा सकते हैं। इन मामलों में अगर दिव्यांगता 40 से 80 प्रतिशत है, तो 75,000 रुपये तक की कटौती प्राप्त की जा सकती है, और अगर दिव्यांगता 80 प्रतिशत से अधिक है, तो उन पर किए गए खर्च पर 1,25,000 रुपये की कटौती प्राप्त की जा सकती है।

80DDB पर भी मिलती है आयकर छूट: आयकर अधिनियम की धारा 80DDB के तहत आश्रित की किसी खास बीमारी के इलाज पर खर्च की गई रकम पर टैक्स छूट मिलती है। इन बीमारियों में डिमेंशिया, अफेजिया, पार्किंसंस, कैंसर, एड्स, रीनल फेल्योर, हीमोफीलिया और थैलेसीमिया जैसी बीमारियां शामिल हैं। आश्रितों में पति-पत्नी, बच्चे, माता-पिता या भाई-बहन शामिल हो सकते हैं। इस धारा के तहत अगर आश्रित मरीज की उम्र 60 साल से कम है तो 40,000 रुपये तक की छूट मिल सकती है और अगर आश्रित मरीज की उम्र 60 साल से ज्यादा है तो 1,00,000 रुपये तक के खर्च को कर योग्य आय से घटाया जा सकता है।

शिक्षा ऋण ब्याज पर भी मिलेगी छूट (80ई): आयकर अधिनियम की धारा 80ई के तहत, स्वयं, जीवनसाथी, बच्चों या उन बच्चों के लिए लिए गए शिक्षा ऋण (उच्च अध्ययन के लिए) पर चुकाए गए ब्याज को कर योग्य आय से घटा दिया जाता है। इस धारा के तहत चुकाए गए ब्याज की पूरी राशि कर मुक्त मानी जाती है, और इसकी कोई अधिकतम सीमा नहीं है, लेकिन ध्यान रहे, ब्याज की राशि अधिकतम 8 वर्षों तक ही कर मुक्त होती है, और यदि आप ऋण को 8 वर्ष से अधिक की अवधि में चुकाते हैं, तो आपको 8 वर्ष के बाद चुकाए गए ब्याज पर कर छूट नहीं मिलेगी। और हां, यदि ऋण को 8 वर्ष से कम अवधि में चुकाया जाता है, तो भी बाद के वर्षों में इस मद में कोई छूट नहीं दी जाएगी।

अपने लिए सही टैक्स व्यवस्था चुनें: पिछले तीन-चार सालों से आयकर की गणना और भुगतान के लिए दो व्यवस्थाएं चल रही हैं, जिन्हें पुरानी टैक्स व्यवस्था और नई टैक्स व्यवस्था कहा जाता है। पुरानी टैक्स व्यवस्था में ये सभी छूट दी जाती हैं, लेकिन टैक्स स्लैब यानी आयकर की दरें थोड़ी ज्यादा होती हैं। नई टैक्स व्यवस्था में ज्यादातर छूट नहीं दी जाती हैं, लेकिन टैक्स की दरें काफी कम होती हैं। इसलिए बहुत सावधानी से गणना करके तय करें- आपकी बचत कितनी है, कुल कितनी छूट मिल सकती है और आपको किसमें ज्यादा फायदा होगा- छूट पाकर पुरानी व्यवस्था में बने रहना या बिना छूट लिए नई व्यवस्था के तहत टैक्स चुकाना। इसके बारे में आप यहां विस्तार से पढ़ सकते हैं- नई टैक्स व्यवस्था या पुरानी आयकर व्यवस्था: चार्ट से समझें, करदाता के लिए कौन सी फायदेमंद

समय पर टैक्स चुकाएं और समय पर ITR फाइल करें: हर वित्तीय वर्ष में अर्जित आय पर टैक्स चुकाने के बाद आपको अपना हिसाब-किताब आयकर विभाग के साथ साझा करना होता है, जिसे आयकर रिटर्न (ITR) दाखिल करना कहते हैं। 31 मार्च को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए उसी वर्ष की 31 जुलाई तक ITR दाखिल करना होता है, लेकिन यह तिथि कभी-कभी बढ़ा दी जाती है। लेकिन याद रखें, यदि उस समय आपकी कोई टैक्स देनदारी सामने आती है, और आपने 31 मार्च से पहले उस राशि का टैक्स जमा नहीं किया, तो आपको उस राशि पर ब्याज देना होगा, और कुछ जुर्माना भी। इसके अलावा, नियत तिथि के बाद ITR दाखिल करने पर भारी जुर्माना भी लगाया जाता है, जिससे आपको निश्चित रूप से परेशानी होगी, इसलिए, हमेशा 31 मार्च से पहले गणना करना और अपनी टैक्स देनदारी का अनुमान लगाना बेहतर होता है, और उस पर सेल्फ असेसमेंट टैक्स भी 31 मार्च से पहले जमा कर दें, ताकि ब्याज और जुर्माने से बचा जा सके, और हाँ, समय पर यानी 31 जुलाई से पहले आयकर रिटर्न भी जमा करें, ताकि जुर्माने की राशि बच सके। (यह भी पढ़ें – नई टैक्स व्यवस्था में बचत करने वालों को होगा नुकसान – चार्ट से समझें)