मकान मालिक को किराया समझौता नहीं, यह दस्तावेज बनवाना चाहिए

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दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों में अक्सर आप मकान मालिकों और किराएदारों के बीच विवाद की खबरें सुनते रहते हैं। आजकल कई लोग प्रॉपर्टी खरीदकर उसे किराए पर भी देते हैं और इसे नियमित आय का जरिया बनाते हैं। अगर मकान मालिक दूसरे शहर में रहता है तो प्रॉपर्टी को लेकर विवाद की संभावना और भी बढ़ जाती है। दूसरी बात यह है कि ज्यादातर मकान मालिकों को लगता है कि रेंट एग्रीमेंट बनवाने से प्रॉपर्टी पर उनका मालिकाना हक सुरक्षित हो जाता है और किराएदार कोई विवाद नहीं कर पाएगा। लेकिन, हम आपको बताना चाहते हैं कि ऐसे किसी भी विवाद से बचने के लिए रेंट एग्रीमेंट की जगह कोई दूसरा दस्तावेज बनवा लें, जिससे आपका मालिकाना हक और भी सुरक्षित हो जाएगा।

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हम बात कर रहे हैं ‘लीज और लाइसेंस’ की। यह दस्तावेज मकान मालिक के हितों की पूरी तरह से रक्षा करने में सक्षम है। शहरों में भी कई लोग ऐसे दस्तावेज बनवाने लगे हैं। इस दस्तावेज में ऐसे प्रावधान हैं कि किराएदार को संपत्ति पर किसी तरह का अधिकार जताने का मौका नहीं मिलता। ऐसा नहीं है कि इसे बनवाना कोई मुश्किल काम है। यह कागज भी रेंट एग्रीमेंट या लीज डीड की तरह आसानी से बन जाता है। प्रॉपर्टी एक्सपर्ट प्रदीप मिश्रा ने इसे बनवाने की पूरी प्रक्रिया बताई है।

रेंट एग्रीमेंट से क्या अलग है?
प्रदीप मिश्रा कहते हैं कि यह पेपर भी रेंट एग्रीमेंट की तरह ही होता है, बस इसमें कुछ क्लॉज बदल दिए जाते हैं। रेंट एग्रीमेंट ज्यादातर रिहायशी इलाकों या प्रॉपर्टी के लिए बनाया जाता है। इसकी अवधि सिर्फ 11 महीने की होती है। लीज एग्रीमेंट की बात करें तो इसे 12 महीने से ज्यादा के लिए भी बनाया जा सकता है। इस पेपर का इस्तेमाल रिहायशी और कमर्शियल दोनों तरह की प्रॉपर्टी के लिए किया जाता है और इसकी अवधि 10 दिन से लेकर 10 साल तक हो सकती है। आप इस दस्तावेज को नोटरी के जरिए सिर्फ स्टांप पेपर पर तैयार करवा सकते हैं। हालांकि अगर आप 10 या 12 साल से ज्यादा के लिए लीज एग्रीमेंट बनवाना चाहते हैं तो उसे भी कोर्ट में रजिस्टर कराना होगा।

मकान मालिक के हितों की रक्षा होती है
चाहे आप लीज एग्रीमेंट बनाएं या लीज और लाइसेंस, ये दोनों ही दस्तावेज मकान मालिक के हितों की रक्षा के लिए होते हैं। इसमें लिखा होता है कि यह संपत्ति किसी निश्चित किराएदार को रिहायशी या व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए दी जा रही है, जिसकी अवधि 10 दिन से लेकर 10 साल तक हो सकती है। लीज और लाइसेंस में मकान मालिक को ‘लाइसेंसकर्ता’ और किराएदार को ‘लाइसेंसधारी’ के तौर पर दर्ज किया जाता है।

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लीज और लाइसेंस क्यों बेहतर है?
लीज और लाइसेंस 10 दिन से लेकर 10 साल तक की अवधि के लिए बनाए जा सकते हैं।

इसमें लिखा है कि किरायेदार किसी भी रूप में संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं जताएगा और न ही किसी अधिकार की मांग करेगा।

अगर लीज़ के किसी भी पक्ष की मृत्यु हो जाती है, तो उसके उत्तराधिकारी इसे जारी रख सकते हैं। किराए के समझौते में ऐसा नहीं होता है।

यदि किरायेदार संपत्ति पर कब्जा कर भी ले तो भी उसके पास कोई कानूनी अधिकार नहीं होगा।