जिंक ने ग्रामीणों से छीना आबादी का अधिकार, गोचर भूमि पर विस्थापित कर भूले

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चित्तौड़गढ़, 5 अगस्त (हि.स.)। किसी भी गांव में पक्की सड़कें, बिजली, पानी आदि मूल भूत सुविधाएं हैं। मूल भूत सुविधाओं को बढ़ाने के लिए सरकार भी प्रयास कर रही हैं। लेकिन चित्तौड़गढ़ जिले में एक ऐसा गांव भी है, जो करीब 35 सालों से विकास की बाट जोह रहा है। बड़ी बात यह कि करीब 85 घरों की आबादी वाले इस गांव से मूल भूत अधिकारों के साथ ही आबादी का अधिकार ही छीन लिया। वर्षों से ये ग्रामीण विकास को तरस रहे हैं। इतना ही नहीं केवल 13 बीघा से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। हिंदुस्तान जिंक ने घोसुंडा बांध निर्माण के दौरान जमीन का अधिग्रहण किया था। ऐसे में ग्रामीणों को विस्थापित किया था। लेकिन आज तक उन्हें अधिकार नहीं मिले और जमीन भी उनके नाम नहीं होने के कारण विकास नहीं हुए हैं।

पीपलवास पंचायत समिति के जवानपूरा कॉलोनी से कई लोग जिला कलेक्टर कार्यालय पहुंचे और जिंक के खिलाफ नारेबाजी की। बाद में अपनी विभिन्न मांगों को लेकर जिला कलेक्टर को एक ज्ञापन सौंपा है। इसमें बताया कि जवानपुरा के सभी कॉलोनीवासी करीब 35 वर्ष पूर्व जेतपुरा खुर्द गांव में रहते थे। हिंदुस्तान जिंक ने 1988 में इनके गांव की जमीन को अधिग्रहण कर लिया था। बाद के इस गांव के लोगों को नई कॉलोनी काट कर जवानपुरा कॉलोनी में जगह दी। यह गांव 35 साल से पीपलावास ग्राम पंचायत में होने के बावजूद पूरा गांव राजस्व रिकार्ड में जिंक के नाम पर ही है। उक्त जमीन को आबादी के रिकॉर्ड में नहीं लिया गया है। इसके कारण गांव में किसी भी किसान का पट्टा नहीं बन पाया है। इस कॉलोनी में 60 से अधिक परिवार होकर जनसंख्या 200 है। इतने सालों में यह गांव ना तो हाइवे से जुड़ा ना ही ग्राम पंचायत मुख्यालय से जुड़ पाया है। वर्तमान में बरसात होने के बाद कच्चे मार्ग पर कीचड़ फैला हुआ है। ऐसे में लोगों को आवागमन में दिक्कत हो रही है।

क्षेत्र के लोगों ने बताया कि वे ग्राम पंचायत मुख्यालय और हाइवे से कटे हुवे हैं। जिंक ने कॉलोनी की मांगों पर ध्यान नहीं दिया। 35 साल में केवल 13 बीघा में सिमट कर रह गए हैं। जिंक ने इस गांव को गोचर भूमि में बसाया। ऐसे में ना तो गांव का विकास हुआ और ना ही ग्रामीणों को पट्टे जारी किए जा सके। ना ही ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का लाभ देने की मांग की। ज्ञापन में ग्रामीणों ने सड़क मार्ग से जोड़ने, पूरे गांव को आबादी में लेकर सरकारी योजनाओं का लाभ देने की मांग की है।

51 की हो गई उम्र लेकिन नहीं मिला कोई लाभ

ग्रामीणों ने बताया कि जिंक ने लोगों को यहां बसाया तब 18 या इससे अधिक उम्र वालों को ही मकान के पट्टे दिए, जो भी जमीन जिंक के नाम पर हैं। वहीं जिनकी उम्र 18 से कम थी उन्हें पट्टे जारी नहीं किए। आज करीब 35 साल बाद ऐसे लोगों की उम्र 51 साल होने आई है लेकिन पट्टे नहीं बने और सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल रहा है।