बंगाल विधानसभा में नए आपराधिक कानूनों की समीक्षा के लिए प्रस्ताव पारित

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कोलकाता, 31 जुलाई (हि.स.)। पश्चिम बंगाल के कानून मंत्री मलय घटक और अन्य सदस्यों द्वारा बुधवार को राज्य विधानसभा में तीन नए आपराधिक कानूनों की समीक्षा के लिए एक प्रस्ताव पेश किया गया। भाजपा सदस्यों ने प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि नए कानून समाज के विभिन्न वर्गों के विचार-विमर्श के बाद लागू किए गए हैं और तृणमूल कांग्रेस के सदस्य इसे राजनीतिक उद्देश्य से लेकर आए हैं।

प्रस्ताव में केंद्रीय सरकार से आग्रह किया गया कि वह इन नए कानूनों की समीक्षा करे ताकि न्यायविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों के विचारों की सहमति के आधार पर अच्छे शासन और मौलिक अधिकारों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों की रक्षा हो सके।

ये तीन नए आपराधिक कानून -भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, एक जुलाई से पूरे देश में लागू हो गए हैं। जिन्होंने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को प्रतिस्थापित किया है।

प्रस्ताव पेश करते हुए मलय घटक ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार और राज्य के कई न्यायविदों द्वारा इन तीन नए कानूनों की विस्तृत जांच में पाया गया है कि इनमें से कई प्रावधान “पुराने कानूनों की तुलना में अधिक कठोर और जनविरोधी” हैं।

उन्होंने कहा कि ये तीन विधेयक पिछले साल 20 दिसंबर को लोकसभा में पारित किए गए थे जब 147 सांसदों को संसद से निलंबित कर दिया गया था, और अगले दिन बिना पर्याप्त चर्चा के राज्यसभा में पारित किए गए थे।

विधानसभा में भाजपा के मुख्य सचेतक शंकर घोष ने कहा कि यह प्रस्ताव राजनीतिक उद्देश्य से लाया गया है। उन्होंने कहा कि नए विधेयकों पर विभिन्न राज्यों, उच्च न्यायालयों, न्यायिक अकादमियों, विधि विश्वविद्यालयों और सांसदों और विधायकों के साथ-साथ कुछ आम जनता के बीच पर्याप्त चर्चा हुई थी, इससे पहले कि संसद में विधेयक पारित किए गए।

घोष ने कहा कि आईपीसी और सीआरपीसी को ब्रिटिश शासकों ने भारतीयों को दंडित करने के लिए बनाया था और केंद्र में भाजपा सरकार नए कानूनों के माध्यम से देश के लोगों को न्याय देना चाहती है।

इस प्रस्ताव को राज्य के वित्त (स्वतंत्र प्रभार) मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य और तृणमूल सदस्यों निर्मल घोष और अशोक कुमार देब द्वारा भी प्रस्तुत किया गया था। इसे पार्टी के विधायकों अपूर्व सरकार, मोहम्मद अली और पन्नालाल हलदर का समर्थन प्राप्त था।

घोष के अलावा, भाजपा सदस्यों अंबिका रॉय और अरूप कुमार दास ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया। रॉय ने कहा कि इसी मुद्दे पर एक प्रस्ताव राज्य विधानसभा में पांच दिसंबर, 2023 को पहले भी लाया और पारित किया गया था, इससे पहले कि संसद में विधेयक पारित हुए थे।

विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी ने कहा कि दिसंबर में लाया गया प्रस्ताव उस समय था जब केंद्र में पिछली एनडीए सरकार सत्ता में थी और इस साल लोकसभा चुनावों के बाद एक नई सरकार ने कार्यभार संभाला है।

भाजपा विधायकों के दावों का जवाब देते हुए बनर्जी ने कहा कि पिछला प्रस्ताव उन विधेयकों के संबंध में था जो अभी संसद में पारित नहीं हुए थे और वर्तमान प्रस्ताव नए कानूनों के बारे में है।