दुर्गा पूजा के लिये सरकारी अनुदान में वृद्धि की घोषणा पर बढ़ने लगा विवाद

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कोलकाता, 24 जुलाई (हि.स.) । पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा सामुदायिक दुर्गा पूजा के आयोजन के लिए 43 हजार क्लबों के वार्षिक अनुदान को 70 हजार रुपये से बढ़ाकर 85 हजार रुपये करने की घोषणा ने कई हलकों से नाराजगी पैदा की है।

कोलकाता नगर निगम (केएमसी) के भाजपा पार्षद सजल घोष ने कहा कि पिछले तीन वर्षों की तरह, वे इस साल भी राज्य सरकार से मिलने वाले अनुदान को स्वीकार नहीं करेंगे। सजल घोष केंद्रीय कोलकाता में प्रसिद्ध संतोष मित्रा स्क्वायर पूजा समिति के प्रमुख हैं।

उनके अनुसार, दुर्गा पूजा का आयोजन राज्य में तब भी होता रहा है जब ऐसे अनुदान नहीं दिए जाते थे। घोष ने कहा, “हम नहीं चाहते कि हमारा क्लब राज्य के खजाने से पैसे की इस निरर्थक बर्बादी का हिस्सा बने, खासकर तब जब राज्य सरकार विकास के लिए आवश्यक खर्चों को पूरा नहीं कर पा रही है।”

पश्चिम बंगाल भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा कि मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार के कर्मचारियों को बढ़ा हुआ महंगाई भत्ता देने, खाली राज्य सरकार के पदों को भरने या राज्य में बिजली दरों को कम करने के के बारे में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया है। कहती हैं कि राज्यकोष खाली है और इस तरह से अनुदान बांट रही हैं।

मुख्यमंत्री ने मंगलवार को पूजा अनुदान में 15 हजार रुपये की वृद्धि की घोषणा करते हुए अनुदान राशि को 70 हजार से बढ़ा कर 85 हजार किये जाने की घोषणा की थी। इसके साथ ही दो बिजली वितरण इकाइयों – पश्चिम बंगाल राज्य विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड (डब्ल्यूबीएसईडीसीएल) और कलकत्ता इलेक्ट्रिक सप्लाई कॉरपोरेशन (सीईएससी) लिमिटेड – की ओर से सामुदायिक पूजा समितियों को बिजली बिल में दी जाने वाली रियायत को पिछले साल के 66 प्रतिशत से बढ़ाकर इस बार 75 प्रतिशत करने का निर्देश दिया था।

ऐसे में कुछ लोग इस बात की आशंका जता रहे हैं कि बिजली वितरण इकाइयां अक्टूबर और नवंबर में आम उपभोक्ताओं के लिए भारी बिल जारी कर सकते हैं ताकि पूजा समितियों को दी गई रियायतों से होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सके।

प्रारंभिक अनुमानों के अनुसार, कुल अनुदान पैकेज का खर्च लगभग 500 करोड़ रुपये होगा, जिसमें से 43 हजार पूजा समितियों को 365 करोड़ रुपये अनुदान के रूप में दिए जाएंगे। इनमें से लगभग 3,000 क्लब कोलकाता में हैं जबकि बाकी राज्य भर में फैले हुए हैं।

कुछ आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि सामुदायिक पूजा समितियों के वार्षिक अनुदान में इस तरह की वृद्धि अनावश्यक खर्च है। वे कहते हैं कि राज्य सरकार को इसके बजाय पूंजीगत व्यय पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिससे संपत्ति का सृजन हो, और अवांछनीय राजस्व व्यय को कम करना चाहिए।

राज्य के खजाने में नकदी की कमी हाल ही में राज्य सरकार के नए भर्ती के बजाय मानव संसाधन के युक्तिकरण के फैसले से स्पष्ट हो गई थी।

पिछले साल एक रिपोर्ट में, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने पश्चिम बंगाल में राजस्व व्यय में वृद्धि पर चिंता व्यक्त की थी, जिसके परिणामस्वरूप राजस्व घाटे में तीव्र वृद्धि हुई थी। कैग रिपोर्ट ने राज्य सरकार के बजटीय प्रबंधन पर भी सवाल उठाए थे, जिसमें कई अनुदानों के तहत अत्यधिक व्यय के उदाहरण बताए गए थे।