बीकानेर, 6 जुलाई (हि.स.)। केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ. जगदीश राणे ने कहा कि यद्यपि ऊंटों की संख्या घट रही है परंतु उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण व विकास की दिशा में एनआरसीसी बेहतरीन कार्य कर रहा है तथा खास बात यह है कि यहां शोध को मानव समाज के स्वास्थ्य लाभ से जोड़कर उसे सिद्ध किया जा रहा है।
राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र (एनआरसीसी) के 41 वें स्थापना दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में डॉ. राणे ने यह बात कही। उन्होंने वैज्ञानिकों को मार्केटिंग के हिसाब से उत्पाद तैयार कर इनके पेटेंट के लिए तथा युवा उद्यमियों को ऊंटनी के दूध आदि को लेकर स्टार्टअप खोलने केलिए भी प्रेरित किया।
इस समारोह में राजस्थान के जैसलमेर, जोधपुर, झालावाड़, बारां जिलों तथा बीकानेर से गाढ़वाला, भामटसर, मोरखाना आदि के ऊंट पालकों, महिला किसान, दुग्ध उद्यमिता से जुड़े युवा उद्यमियों, बीएसएफ के जवानों, स्कूली बच्चों, बीकानेर स्थित आईसीएआर के विभागाध्यक्षों व एनआरसीसी के सेवा निवृत्त तथा कार्यरत वैज्ञानिकों, अधिकारियों, कर्मचारियों सहित 200 से ज्यादा ने शिरकत की।
केन्द्र के निदेशक व कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.आर.के.सावल ने कहा कि केन्द्र द्वारा ऊंटों के जनन, प्रजनन, आनुवांशिकी, शरीर कार्यिकी, पोषण, स्वास्थ्य आदि को लेकर गहन शोध कार्य किए गए साथ ही बदलते परिवेश में ऊंटों की उपादेयता बढ़ाने के लिए शोध द्वारा ऊंटनी के औषधीय दूध का मानव रोगों यथा-मधुमेह, टी.बी., ऑटिज्म आदि के प्रबंधन में लाभदायक पाया है फलस्वरूप समाज में इसके प्रति जागरूकता व दूध की स्वीकार्यता भी तेजी से बढ़ी है साथ ही ऊंट पालकों की अतिरिक्त आमदनी बढ़ाने के लिए उष्ट्र पर्यावरणीय पर्यटन विकास कार्यों को बढ़ावा दिया जा रहा है। वर्तमान में संस्थान में भ्रमणार्थ पर्यटकों की सालाना संख्या लगभग 50 हजार से ऊपर पहुंच गई है।
विशिष्ट अतिथि डॉ.एस.एन.टंडन, पूर्व प्रधान वैज्ञानिक , एनआरसीसी ने विगत वर्षों में एनआरसीसी की प्रगति की सराहना करते हुए कहा कि ऊँटों की उपादेयता को समाजार्थिक आवश्यकता अनुसार तलाशे जाने की महत्ती आवश्यकता है ताकि इस उष्ट्र प्रजाति व संबद्ध समुदायों को लाभ मिले।
केन्द्र के स्थापना दिवस पर बीएसएफ के जवानों द्वारा उष्ट्र परेड, केन्द्र द्वारा सजावटी ऊंटों का प्रदर्शन, महिला पशुपालकों द्वारा उष्ट्र गाड़ा प्रदर्शन, ऊंट नृत्य, स्कूली विद्यार्थियों द्वारा अंतरराष्ट्रीय कैमलिडस वर्ष थीम पर रंगोली प्रदर्शन कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। साथ ही उष्ट्र दुग्ध उत्पादों, उष्ट्र आधारित छायाचित्र प्रदर्शनी लगाई गई। ऊंटों के लोक गीतों, फिल्मों, विज्ञापनों इत्यादि में उपयोग संबंधी चलचित्र की प्रस्तुति की गई। उष्ट्र पालन से जुड़े हितधारकों द्वारा उष्ट्र संरक्षण, पालन व उष्ट्र दुग्ध उद्यमिता पर विचार साझा किए तथा उष्ट्र पालन को लेकर जमीनी स्तर पर आ रही चुनौतियों के समाधान की आवश्यकता जताई। इस अवसर पर केन्द्र के वैज्ञानिकों द्वारा संस्थान की गत 40 वर्षों की उपलब्धियों को प्रस्तुत किया गया। साथ ही दो कूबड़ ऊंट व शुष्क क्षेत्रों में पौधों की प्रजातियों की वर्तमान स्थिति संबंधित पुस्तकों का विमोचन किया गया। केन्द्र द्वारा उष्ट्र दुग्ध उद्यमिता से जुड़े उष्ट्र पालकों को उनके उल्लेखनीय योगदान तथा बीएसएफ को ऊंटों की उपयोगिता को आज के दौर में बनाए रखने में महत्वपूएर्ण योगदान के लिए सम्मानित किया गया। उष्ट्र पालन के क्षेत्र में केन्द्र के उष्ट्र अनुचरों के महत्ती योगदान हेतु भी सम्मानित किया गया।