30 जून को जैसे ही घड़ी की सुई 12 बजाएगी, देश में आईपीसी के तहत अंग्रेजों के बनाए कानून खत्म हो जाएंगे। 1 जुलाई शुरू होते ही इनकी जगह पर बने तीन नए आपराधिक कानून लागू हो जाएंगे । इनमें भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) 2023 शामिल हैं। चूंकि नए आपराधिक कानूनों में जांच, ट्रायल और अदालती कार्यवाही में तकनीक के इस्तेमाल पर विशेष जोर दिया गया है। इसलिए एनसीआरबी ने मौजूदा क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम (सीसीटीएनएस) एप्लीकेशन में 23 कार्यात्मक संशोधन किए हैं। ताकि नई व्यवस्था में भी एफआईआर दर्ज करने समेत सीसीटीएनएस से जुड़े अन्य सभी काम आसानी से कंप्यूटर से करने में कोई दिक्कत न आए।
बड़े पैमाने पर तैयारियां पहले ही शुरू हो चुकी थीं
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में गृह मंत्रालय ने 25 दिसंबर 2023 को तीनों नए आपराधिक कानूनों की अधिसूचना जारी होने के तुरंत बाद पुलिसकर्मियों, जेल, अभियोजकों और न्यायिक अधिकारियों सहित फोरेंसिक कर्मियों को जागरूक करने के लिए बड़े पैमाने पर काम करना भी शुरू कर दिया है। इसके अलावा एनसीआरबी ने नए कानूनों को लागू करने में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की मदद के लिए 36 सहायता दल और कॉल सेंटर भी बनाए हैं। ताकि अगर किसी राज्य को इन नए कानूनों के क्रियान्वयन से संबंधित किसी तरह की तकनीकी या अन्य समस्या का सामना करना पड़ रहा है तो उसका तुरंत समाधान किया जा सके।
ई-सम्मान नाम से तीन नए ऐप भी बनाए गए
राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) ने नए कानूनों के तहत अपराध स्थलों की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी, अदालती सुनवाई और अदालती समन की इलेक्ट्रॉनिक सेवा की सुविधा के लिए ई-साक्ष्य, न्यायस्रुति और ई-समन नाम से तीन नए ऐप भी बनाए हैं। बीपीआरएंडडी ने इन कानूनों के सभी पहलुओं को समझाने के लिए 250 वेबिनार और सेमिनार आयोजित किए। जिसमें 40 हजार 317 अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया गया। ब्यूरो के मार्गदर्शन में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने 5,84,174 कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया। शिक्षकों और छात्रों को इनके बारे में जागरूक करने के लिए यूजीसी ने 1200 विश्वविद्यालयों और 40 हजार कॉलेजों और अखिल भारतीय तकनीकी परिषद ने करीब नौ हजार संस्थानों को इनके बारे में जागरूक किया।