अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों में से एक माना जाता है। यहां इलाज के लिए आने वाले मरीज डॉक्टरों को अपना भगवान मानते हैं। यहां इलाज किया गया मामला एक चमत्कार है।
एक महिला के पहले 7 बच्चे गर्भ में ही मर चुके थे और 8वां बच्चा भी मौत की कगार पर था। इस बच्चे को बचाने के लिए जापान से दुर्लभ रक्त मंगाया गया और एम्स के डॉक्टर देवदूत बनकर मरते हुए बच्चे की जान बचा ली. इस घटना को चमत्कार कहा जाए तो बिल्कुल भी अतिश्योक्ति नहीं होगी। डॉक्टरों ने जीन की पहचान की और जापान से दुर्लभ रक्त मंगवाया और बच्चे की जान बचाई। एम्स की स्त्री रोग विशेषज्ञ एवं ऑब्स विभाग की एचओडी डॉ. नीना मल्होत्रा ने कहा कि हमने बच्चे की केस हिस्ट्री जांची और मां की भी मेडिकल जांच की गई. हमारे लिए उनके ब्लड ग्रुप की पहचान करना मुश्किल था. हमने एम्स के हेमेटोलॉजी विभाग से केवल रक्त ही नहीं, बल्कि जीन की भी जांच करने को कहा। जिसमें पता चला कि महिला का ब्लड ग्रुप आरएच निगेटिव है. जो बच्चे से मेल नहीं खा रहा था.
कार्यक्रम क्या है?
हरियाणा के एक गांव से एक गरीब महिला जब एम्स आई तो उसके 7 बच्चे गर्भ में ही मर चुके थे. 8वां बच्चा गर्भ में ही दम तोड़ रहा था तभी एम्स के डॉक्टर उसके बचाव में आए और बच्चे की जान बचाई। महिला के एम्स आने से पहले कई डॉक्टरों ने कहा था कि यह महिला मां नहीं बन पाएगी। हालाँकि, पाँच साल की शादीशुदा ज़िंदगी के बाद उन्होंने एक बार फिर गर्भवती होने का फैसला किया। वह 8वीं बार मां बनने वाली थीं। लेकिन उसके शरीर में बनी एंटीबॉडी ने बच्चे को गर्भ में ही नष्ट कर दिया।