अंग्रेज कलेक्टर व ज्वाइंट मजिस्ट्रेट की सामूहिक हत्या से मचा था बवाल

हमीरपुर, 13 जून (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में 167 वर्ष पूर्व अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की आग भड़की थी। उसी दिन ट्रेजरी में तैनात सशस्त्र सरकारी गार्डों ने बगावत कर दिया था। यहां के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अंग्रेज कलेक्टर टीके लायड और ज्वाइंट मजिस्ट्रेट डोनाल्ड को कचहरी में सरेआम गोलियों से भून डाला था। इस सनसनीखेज वारदात से बौखलाए अंग्रेज सैनिकों ने सुरौली बुजुर्ग गांव को ही उजाड़ दिया था। हम हमीरपुर के उस इतिहास का जिक्र आज कर रहे हैं जिसे इससे पहले कभी किसी ने जाना नहीं होगा।

23 जून 1757 को प्लासी के युद्ध में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को मीरजापर की गद्दारी से ब्रिटिश कम्पनी के सैनिकों ने करारी मात देकर भारत में ब्रिटिश शासन की आधारशिला रखी थी। ब्रिटिश शासन की स्थापना के 100 साल बाद 1857 में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ बगावत की उठी चिंगारी देखते ही देखते पूरे हिन्दुस्तान में ज्वाला का रूप धारण कर लिया था। ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ मेरठ छावनी में बगावत की आग भड़की तो उससे पूरा देश प्रभावित हुआ। 1857 का मई महीना मेरठ शहर एवं सिपाही मंगल पांडेय ने जंग छेड़ दी थी। उस जमाने में टीके लायड हमीरपुर में ब्रिटिश कलेक्टर थे। हमीरपुर के क्षेत्राधिकार वाली 56वीं नेटिव इन्फेंट्री फोर्स का मुख्यालय कानपुर भी सैनिक असंतोष के दौर से गुजर रहा था। चारों ओर फैल रहे अंसतोष और विद्रोह की खबरों से हमीरपुर के देशभक्त भी अंग्रेज प्रशासन के खिलाफ लामबंद हो गये थे। हमीरपुर में 13 जून 1857 के दिन अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह भड़का था। उसी दिन ट्रेजरी में तैनात सशस्त्र गार्ड ने बगावत कर दिया था। कलेक्टर के आवास पर भीड़ ने हल्ला बोला।

बताया जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की एक टुकड़ी ने स्थानीय लोगों के साथ पहले तो कलेक्टर आवास पर हल्ला बोला फिर जेल में धावा बोलकर कैदियों को मुक्त कराया था। भीड़ के जेल में हल्ला बोलने के दौरान यूरोपियन कैदी भाग गये थे जबकि अन्य कैदी मार दिये गये थे। अंग्रेजों के खिलाफ शुरू हुई जंग के दौरान हमीरपुर में स्थिति तनावपूर्ण हो गयी थी।

भीड़ के हमला करने से अंग्रेज कलेक्टर टीके लायड एवं ज्वाइंट मजिस्ट्रेट डोनाल्ड ग्रांट बंगला छोड़ यमुना किनारे से होते हुए यमुना बेतवा के संगम स्थित झाडिय़ों में छिपे थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों व स्थानीय लोगों की भीड़ ने संगम के आसपास घेराबंदी कर दोनों को रस्सी से बांधकर खूब मारा गया फिर मारते पीटते दोनों को हमीरपुर कचहरी लाया गया था। ऐतिहासिक घटनाक्रम के मुताबिक विद्रोहियों के हाथों पकड़े गये दोनों अंग्रेज अफसरों को 6 किमी पैदल दौड़ाकर हमीरपुर लाया गया था और दोनों की बेरहमी से पिटाई भी की गयी थी। दोनों अंग्रेज प्रशासकों को हमीरपुर कचहरी परिसर में लाकर सरेआम गोलियों से भून डाला गया था। इस दौरान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने भारत माता की जय का उद्घोष किया था।

हमीरपुर के सुरौली बुजुर्ग के गौर राजपूतों ने यमुना नदी पार कर रहे अंग्रेजों की बंदूक से भरी नाव लूटी तो अंग्रेजी फौज ने इस गांव को ही उजाड़ दिया था। गिरधारी ठेकेदार की हत्या कर दी थी। विद्रोह के दौरान बिहुंनी के नवाब हुसैन खान ने कलेक्टर टीके लायड की मदद के लिए 100 आदमी व एक बन्दूक की व्यवस्था की थी। 500 नये सैनिकों की भर्ती लायड ने की थी।

हमीरपुर में घोषित हुआ था पेशवा राज-

हमीरपुर के इतिहास का बारीकी से शोध करने वाले यहां के तत्कालीन जिला प्रोवेशन अधिकारी एएन अग्निहोत्री के मुताबिक इस भूभाग में अंग्रेजों के खिलाफ बहुत बड़ी बगावत हुई थी। हमीरपुर में 1 जुलाई 1857 को पेशवा राज घोषित हुआ था तब ब्रिटिश फौजों ने कानपुर पर दोबारा कब्जा कर लिया था। देशी रियासतों व राजाओं ने ब्रिटिश हुक्मरानों की मदद भी की थी।

तत्कालीन जिला प्रोवेशन अधिकारी एएन अग्निहोत्री के मुताबिक अंग्रेजों के जमाने का कलेक्ट्रेट कचहरी में बनी थी जिस पर बुलडोजर चलवाकर नई कलेक्ट्रेट का निर्माण हो चुका है। हमीरपुर सदर तहसील भी इतिहास का पन्ना बन गई है। अस्पताल सहित हमीरपुर शहर में कई धरोहरें भी खत्म हो गयी है लेकिन मौदहा क्षेत्र के नारायच में आज भी अंग्रेजी हुकूमत का बंगला है।