दावा किया जा रहा है कि राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेसवे पर सैटेलाइट आधारित टोल वसूली शुरू होने के बाद लोगों का समय बचेगा। शुरुआत में टोल प्लाजा पर नकद में टोल लिया जाता था, लेकिन इससे लंबा जाम लग जाता था, जिसे कम करने के लिए सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने फास्टैग व्यवस्था शुरू की, जिसमें फास्टैग वॉलेट में पहले से पैसा रखना होता है। जब कोई वाहन टोल प्लाजा पर पहुंचता है तो वहां लगे ऑटोमेटिक नंबर प्लेट रीडर (एएमपीआर) कैमरों की मदद से फास्टैग वॉलेट का बैलेंस चेक कर टोल काट लिया जाता है, लेकिन इस व्यवस्था में भी कई खामियां हैं।
फास्टैग स्कैन न होने की शिकायतें मिलती रहती हैं: कभी फास्टैग स्कैन नहीं होता तो कभी फास्टैग वॉलेट में पैसे होने पर भी पर्याप्त बैलेंस नहीं दिखता, जिसके कारण टोल प्लाजा पर लगे बैरियर नहीं खुलते और लोगों को अधिक समय तक इंतजार करना पड़ता है। लोग लंबे समय से इसकी शिकायत कर रहे थे, इसलिए ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (जीएनएसएस) के जरिए टोल प्लाजा की लेन से बैरियर हटाए जाने हैं। इससे टोल प्लाजा पर लोगों का समय बचेगा।
यह प्रणाली क्यों आवश्यक है?
यह सिस्टम लाना इसलिए जरूरी हो गया है क्योंकि तेजी से बढ़ते सड़क नेटवर्क के बाद वाहनों की संख्या भी काफी तेजी से बढ़ रही है और मौजूदा फास्टैग टोल कलेक्शन सिस्टम में कई खामियां हैं, इसलिए इसकी जरूरत है।
विशेषज्ञों से परामर्श
पहले चरण में द्वारका एक्सप्रेसवे और देश के अन्य एक्सप्रेसवे और राष्ट्रीय राजमार्गों पर जीएनएसएस को लेकर ट्रायल हो चुके हैं, जो काफी सफल रहे हैं। अब इस सिस्टम को लागू करने से पहले जीएनएसएस तकनीक पर काम कर रहे विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा किया जा रहा है। उनके सुझावों को भी इसमें शामिल किया जाना है। इसके लिए इस महीने के आखिरी हफ्ते में अंतरराष्ट्रीय स्तर की कॉन्फ्रेंस भी बुलाई गई है।