स्वामी विवेकानंद सामाजिक-राजनीतिक नेता से ज्यादा रहे हैं एक समाज वैज्ञानिक” : आर्लेकर

धर्मशाला, 10 जून (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र और सामाजिक नृविज्ञान विभाग द्वारा “आधुनिक समाज, दिशा एवं चुनौतियां : वांछित प्रतिउत्तर स्वामी विवेकानंद” विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सोमवार को शुरू हुई। संगोष्ठी का उद्घाटन बतौर मुख्य अतिथि बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सत प्रकाश बंसल ने की। संगोष्ठी संयोजक डॉ. गिरीश गौरव ने सभी गणमान्यों का स्वागत करते हुए संगोष्ठी में भाग लेने पर आभार जताया। इस मौके पर बतौर मुख्य अतिथि राज्यपाल आर्लेकर ने स्वामी विवेकानंद के जीवन पर प्रकाश डालते हुए, उन्हें सामाजिक या राजनीतिक नेता से अधिक एक समाज वैज्ञानिक बताया।

उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने समाज में न्याय और समानता के महत्व पर बल दिया और वंचित वर्गों के प्रति समाज के दायित्वोंको भी उजागर किया। उन्होंने कहा कि 15 अगस्त 1947 को हमें राजनीतिक स्वतंत्रता तो जरूर मिली, लेकिन हमारे अंदर स्वदेशी भावना नहीं आ पाई। जब तक हमारे अंदर ‘स्व’ की भावना नहीं आएगी, तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं रह जाता। मुख्य अतिथि ने कहा कि नई शिक्षा नीति के फलस्वरूप भारत 2047 तक विकसित देश बनने में कामयाब होगा, जिसका सपना कभी स्वामी विवेकानंद ने देखा था। अपने संबोधन में उन्होंने स्वदेशी व्यवस्था को अपनाने पर बल दिया।

वहीं विश्वविद्यालय के कुलपति और संगोष्ठी अध्यक्ष सत प्रकाश बंसल ने संगोष्ठी की महत्ता पर अपनी बात रखते हुए स्वामी विवेकानंद के जीवन पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गुरु और शिष्य के बीच पवित्र रिश्ता बना रहना चाहिए, जैसे स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस के बीच था। उन्होंने विश्वविद्यालय में नई शिक्षा नीति लागू होने और विवि को के प्लस रैंक मिलने का श्रेय राज्यपाल आर्लेकर को दिया।

कुलपति ने बताया कि हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विवि पूरे देश में पहला संस्थान है, जहां हिंदू स्टडीज सेंटर की शुरुआत की गई है। इसके बाद बनारस हिंदू विवि में इसके लिए पहल की गई थी। उनके पत्र लिखे जाने के बाद ही यूजीसी ने इस विषय पर नेट-जेआरएफ की परीक्षा शुरू करवाई। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति की बदौलत ही भारत दोबारा विश्वगुरू बनने की राह पर अग्रसर है। संबोधन के अंत में उन्होंने छात्रों के लिए विवेकानंद के प्रसिद्ध वाक्य “उठो जागो और आगे बढ़ो” का पाठ किया और निरंतर बढ़ते रहने का संदेश दिया।