शरीर से टूट जाना मगर मन से कभी मत टूटनाः पंडित राघव मिश्रा

सीहोर, 04 जून (हि.स.)। अपना कर्म स्वयं करो। अंतिम समय में जो तुमने कमाया है, वही तुम्हारे साथ जाएगा। जब तुम्हारे प्राण छूटेंगे सब वहीं रह जाएगा। शरीर से टूट जाना मगर मन से कभी मत टूटना। सौभाग्यशाली होती हैं वह जीव आत्माएं, जिन्हें संतों की संगत में बैठकर भगवान शिव की कथा को श्रवण करने का अवसर मिलता है। कथा यज्ञ स्थली एक ऐसा माध्यम है, जहां आकर माया में लिप्त हमारा मन कुछ समय के लिए प्रभु का चितन एवं गुणगान कर विश्राम पाता है। कल्याणकारी कथा जीने की कला सिखाती है।

यह विचार जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में आयोजित संगीतमय शिव महापुराण के दूसरे दिन मंगलवार को प्रसिद्ध कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा के पुत्र कथा व्यास पंडित राघव मिश्रा ने व्यक्त किए। पंडित मिश्रा ने इस दौरान भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह प्रसंग पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि एक आदर्श वैवाहिक जीवन एक दूसरे के तालमेल से चलता है। भगवान शिव हमेशा जनकल्याण के बारे में ध्यान में रहते है और माता पार्वती सभी के कल्याण की भावना रखती है, भगवान शिव के परिवार से जग को ऊर्जा मिलती है। मंगलवार को शहरी और ग्रामीण समाजसेवियों सहित अन्य ने कथा व्यास पंडित मिश्रा का स्वागत कर आशीर्वाद लिया।

उन्होंने कहा कि हमारा कर्तव्य बस इतना है कि हम अपनी श्रद्धा भगवान शिव को समर्पित करें। अपनी पूजा में भगवान शिव से वैभव, धन सम्रद्धि, गाड़ी, बंगला के बजाय भगवान का साथ मांगिये जब बाबा आपके साथ होंगे तो सारी चीजें आपको प्राप्त हो जाएगी। माता पिता गुरु कभी भेद नहीं करते भेद की दृष्टि हमारे मन की उपज है।

कुबेरेश्वरधाम पर जारी पांच दिवसीय कथा में हर रोज बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं आ रहे हैं और मंत्रमुग्ध होकर कथा सुन रहे हैं। मंगलवार को यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। इस दौरान शिव पुराण में वर्णित प्रसिद्ध शिव भक्तों के जीवन चरित्र, भक्ति के संबंध में कथा का वाचन किया। कथा व्यास ने कहा कि शिव पुराण की कथा हमें जीवन जीने की कला सिखाती है। हमें भगवान शिव की भक्ति उनकी गाथाओं का श्रवण करना चाहिए, ताकि हमारा मानस जन्म सुखमय बन सके। अपने जीवन को सुखमय करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि माता सती भगवान शिव के मना करने पर भी प्रजापति दक्ष के यज्ञ में पहुंची। बिना बुलाए अपने पिता के घर गईं। अपमान का सामना न करते हुए अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। शिव पुराण की कथा हमें उपदेश देती है कि जीवन साथी व अपने गुरु पर विश्वास व श्रद्धा होनी जरूरी है। बिन बुलाए मेहमान व बिना परिवार की आज्ञा से कहीं पर भी जाना शुभ नहीं होता।