जयपुर, 28 मई (हि.स.)। राजस्थान हाईकोर्ट ने 33 साल पुराने आपराधिक मामले का निस्तारण करते हुए कहा है कि निचली अदालत ने छह साल की बच्ची से दुष्कर्म के प्रयास में अभियुक्त अपीलार्थी को सजा सुनाई थी, जबकि यह मामला दुष्कर्म के प्रयास का नहीं बल्कि लज्जा भंग का है। अदालत ने याचिकाकर्ता को दुष्कर्म के प्रयास में मिली सजा को लज्जा भंग की सजा में बदलते हुए उसे जेल में बिताई अवधि तक सीमित कर दिया है। जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश सुवालाल की आपराधिक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अपराध का प्रयास करने के तीन चरण होते हैं। दुष्कर्म के प्रयास जैसे अपराध के लिए आरोपित का तैयारी के चरण से आगे बढना आवश्यक होता है। अदालत ने कहा कि घटना के समय अभियुक्त 25 साल का था और करीब ढाई माह जेल में रहा है। यह मामला 33 साल तक चला और यह अवधि किसी को भी मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से थका देने के लिए पर्याप्त है। इसलिए अब उसे वापस जेल भेजना उचित नहीं होगा।
याचिका में कहा गया कि 9 मार्च, 1991 को पीडिता के दादा ने टोडारायसिंह थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। रिपोर्ट में कहा गया कि उसकी छह साल की पोती प्याऊ पर पानी पीने गई थी। इतने में अभियुक्त उसे दुष्कर्म करने के उद्देश्य से जबरन पास की धर्मशाला में ले गया। इस दौरान पीडिता के चिल्लाने पर गांव वाले वहां आ गए और उसे बचा लिया। रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने अभियुक्त को गिरफ्तार कर अदालत में आरोप पत्र पेश किया। वहीं ट्रायल कोर्ट ने 3 जुलाई, 1991 को उसे दुष्कर्म के प्रयास में तीन साल छह माह की सजा सुनाई। इस आदेश को चुनौती देते हुए कहा गया कि अभियुक्त पर आरोप है कि उसने पीडिता और खुद के अंतर्वस्त्र उतारे थे। उस पर दुष्कर्म का प्रयास करने का आरोप नहीं है। ऐसे में निचली अदालत ने गलत दंड दिया है। वहीं राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि पीडिता ने अपने बयान में अभियुक्त की ओर से दोनों के कपड़े उतारने की बात कही थी, लेकिन बचाव पक्ष ने उसका प्रति परीक्षण नहीं किया। इससे दुष्कर्म करने का प्रयास करना साबित है। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत मामले का निस्तारण कर दिया है।