जयपुर, 28 मई (हि.स.)। राजस्थान हाईकोर्ट ने नर्स ग्रेड द्वितीय भर्ती-2013 में नियुक्ति से जुडे मामले में राज्य सरकार पर 25 हजार रुपये का हर्जाना लगाया है। इसके साथ ही अदालत ने एक माह में दस्तावेज सत्यापन के बाद याचिकाकर्ता को समस्त परिलाभों के साथ नियुक्ति देने को कहा है। जस्टिस गणेश राम मीणा ने यह आदेश अल्ताफ की याचिका पर दिए।
अदालत ने कहा कि पहले और दूसरे संशोधित परिणाम में याचिकाकर्ता का चयन नहीं हुआ। ऐसे में एक बेरोजगार व्यक्ति से यह आशा नहीं रखी जा सकती कि वह इसके बाद भी एजेंसी की वेबसाइट देखता रहे। सरकारी वकील का यह कहना कि अभ्यर्थी को नियमित वेबसाइट देखनी चाहिए थी, ऐसा कहना उचित नहीं है और यह बेरोजगार व्यक्ति के गाल पर तमाचा मारने जैसा है। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि चयनित अभ्यर्थी को अगले चरण की सूचना देना भर्ती एजेंसी का काम है। अदालत ने भर्ती एजेंसी को सुझाव दिया है कि भर्ती के विभिन्न चरणों के बीच उचित समय दिया जाना चाहिए। कई बार देखा गया है कि ग्रामीण इलाकों के अभ्यर्थी तकनीकी कारणों के कारण संबंधित वेबसाइट नहीं देख पाते। याचिकाकर्ता के मामले में भी तीन बार संशोधित परिणाम जारी किया गया और अगले ही दिन सफल अभ्यर्थियों को दस्तावेज सत्यापन के लिए बुला लिया गया। राजस्थान जैसे बड़े भूभाग वाले प्रदेश में सफल अभ्यर्थियों को सुदूर इलाके कुछ घंटों में राजधानी में उपस्थित होने की कहना असंवैधानिक है। भर्ती में सफल याचिकाकर्ता को यह कहकर नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता कि वह दस्तावेज सत्यापन के लिए उपस्थित नहीं हुआ, जबकि उसे सही ढंग से चयन की जानकारी तक नहीं दी गई थी। अदालत ने कहा कि यह एक अभ्यर्थी से अपेक्षा नहीं रखी जा सकती कि वह इस आशा के साथ लगातार विभाग की वेबसाइट देखें कि विभाग एक बार फिर संशोधित परिणाम जारी करेगा।
याचिका में अधिवक्ता विभूति भूषण शर्मा ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग ने 26 फरवरी, 2013 को नर्स ग्रेड द्वितीय की भर्ती निकाली थी। विभाग की ओर से 23 जून, 2013 को निकाली गई पहली चयन सूची में याचिकाकर्ता कट ऑफ के बाहर रहा। वहीं विभाग ने 28 अक्टूबर, 2015 को दूसरी चयन सूची जारी की, इसमें भी याचिकाकर्ता का चयन नहीं हुआ। इसके बाद 9 फरवरी, 2016 को विभाग ने फिर से संशोधित सूची जारी की, जिसमें याचिकाकर्ता का चयन हो गया। याचिका में कहा गया कि विभाग ने अगले ही दिन चयनित अभ्यर्थियों को 28 मार्च तक पद ग्रहण करने को कहा। इस दौरान कुछ पद खाली रहने के चलते विभाग ने वेटिंग लिस्ट से अभ्यर्थियों को नियुक्ति दे दी। याचिका में कहा गया कि उसे चयनित होने की जानकारी ही नहीं दी गई और ना ही उसका नियुक्ति आदेश जारी किया गया। वहीं बाद में जानकारी मिलने पर याचिकाकर्ता ने विभाग में नियुक्ति के लिए प्रार्थना पत्र दिया, लेकिन उसे नियुक्ति नहीं दी गई। दूसरी ओर राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता दस्तावेज के सत्यापन के लिए उपस्थित नहीं होने के कारण उसे नियुक्ति नहीं दी गई। यह याचिकाकर्ता का कर्तव्य था कि वह नियमित विभाग की वेबसाइट देखता। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने याचिकाकर्ता को एक माह में नियुक्ति देने के आदेश देते हुए राज्य सरकार पर हर्जाना लगाया है।