क्षीर सागर हिंदू धर्म में एक पवित्र स्थान है। यह ब्रह्मांड के केंद्र में है. शास्त्रों में इसे विशाल क्षीर सागर कहा गया है। इस सागर में भगवान विष्णु को शेषनाग नामक विशाल नाग की शय्या पर आराम करते हुए दर्शाया गया है। क्षीर सागर को सृजन, मोक्ष और शांति का प्रतीक माना जाता है। क्षीर सागर भगवान विष्णु और उनकी शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसा कहा जाता है कि जिन लोगों ने भगवान विष्णु की अत्यधिक भक्ति और तपस्या की है उन्हें क्षीर सागर में प्रवेश करने का वरदान मिल सकता है। अब ऐसे में मन में यह सवाल आता है कि आखिर भगवान श्रीहरि विष्णु ही क्षीर सागर में क्यों निवास करते हैं। आइए इस लेख में ज्योतिषी पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानें।
जानिए क्षीर सागर का धार्मिक महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार क्षीर सागर ही सृष्टि का उद्गम स्थल है। सृष्टि के पालनकर्ता इस महासागर में शेषनाग की शय्या पर विश्राम करते हैं। क्षीर सागर को मोक्ष का प्रतीक भी कहा जाता है। इस सागर में भगवान विष्णु का निवास दर्शाता है कि वे मोक्ष के दाता हैं और भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति कराते हैं। क्षीर सागर शांति और समृद्धि का प्रतीक है। इस महासागर में भगवान विष्णु का निवास यह दर्शाता है कि वे सृष्टि में शांति और समृद्धि बनाए रखते हैं।
भगवान विष्णु क्षीर सागर में क्यों निवास करते हैं?
शास्त्रों के अनुसार क्षीर सागर का संबंध संसार के विनाश से भी है। इस महासागर में भगवान विष्णु का निवास दर्शाता है कि वे विनाश के बाद पुनः सृष्टि की रचना करते हैं। भगवान विष्णु का क्षीरसागर में विश्राम करना बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। भगवान विष्णु का शेषनाग पर शयन करना आत्मज्ञान का प्रतीक है। शेषनाग अनंत काल का प्रतीक है, और भगवान विष्णु का उस पर आराम करना दर्शाता है कि वह समय से परे हैं और सभी ज्ञान के वाहक हैं। क्षीर सागर को “दूध का सागर” भी कहा जाता है। भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी भी उनके साथ क्षीर सागर में निवास करती हैं।
क्षीर सागर में कौन प्रवेश कर सकता है?
केवल वही व्यक्ति जो भगवान विष्णु के प्रति अत्यधिक भक्ति और तपस्या रखता है, क्षीर सागर में प्रवेश कर सकता है। उन्हें ही क्षीरसागर में प्रवेश का वरदान मिल सकता है।