मसूरी, 24 मई (हि.स.)। मसूरी में हिम सुरभि अरोमा म्यूजियम में ‘पारंपरिक भारतीय इत्र में अरंडी की सुगंध और आगे बढ़ने का एक स्थायी तरीका’ विषय पर सम्मेलन आयोजित किया गया। सम्मेलन में वक्ताओं ने वनों के पौधों से इत्र बनाने और इससे रोजगार सृजन पर अपने विचार व्यक्त किए।
लाइब्रेरी स्थित हिम सुरभि अरोमा म्युजियम में आयोजित सम्मेलन में एफआरआई के वैज्ञानिक और सीबीपीडी के अध्यक्ष डॉ. वीके वार्षणेय ने कहा कि उत्तराखंड के वनों में ईत्र बनाने की अपार संभावनाएं हैं। यहां पर बहुत सारे हब्स, स्पाइस, सुगंधित हुड्स हैं जिससे इत्र बनाया जा सकता है। चमोमाइल, रोमन चमोमइल, वैटिवा, रोज मैरी, सिडरवुड, रोज, देवराद आदि हैं जो बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं।
इस मौके पर कन्नौज से आये धीरेंद्र कुमार दुबे ने कहा कि उत्तराखंड में इत्र बनाने की बहुत संभावनाएं हैं। यहां पर अनेक प्रकार के सुगंधित पौधे व पेड़ हैं। उन्होंने खुद देवदार, जंगली गुलाब, कपूर की बत्ती से इत्र बना कर दिखाया है। उन्होंने कहा कि ज्योति मारवाह ने उन्हें यहां आमत्रित किया ताकि लोग इस दिशा में प्रयास करें।
इस मौके पर ज्योति मारवाह ने कहा कि इस दिशा में पांच साल से कार्य कर रहे हैं जिसे हिम सुरभि अरोमा म्यूजियम के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है वनों से जो हमें अरोमा मिलते है इसको सभी हल्के में लेते है तथा इसे अनदेखा कर देते हैं जबकि जंगलों से असीम सुगंधित पौधे मिलते है। इस मौके पर अभिषेक रावत अनुसंधान पर्यवेक्षक और मीडिया समन्वयक, हिमसुरभी, प्रियका भंडारी रमेश चमोली, रिंकी, अंजलि,रविंद्र कुमार मारवाह प्रो. डाॉ. कुमुद पंत आदि मौजूद थे।