सीजेएम बांदा की कारस्तानी पर हाईकोर्ट आश्चर्यचकित

प्रयागराज, 22 मई (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अधीनस्थ अदालत का कोई भी जज बिना जिला जज की सहमति व विश्वास में लिए व्यक्तिगत हैसियत से अति गम्भीर अपराधों के अलावा अन्य मामलों में एफआईआर दर्ज न कराये। कोर्ट ने ऐसा आदेश सभी अदालतों में सर्कुलेट करने का महानिबंधक को आदेश दिया है।

कोर्ट ने जजों के व्यक्तित्व, पद की गरिमा व उच्च आदर्शों का उल्लेख करते हुए सीजेएम बांदा भगवान दास गुप्ता के आचरण को लेकर तीखी टिप्पणी की है। कहा कि वह बकाया बिजली बिल भुगतान की कानूनी लड़ाई हारने के बाद अधिकारियों को सबक सिखाने के लिए एफआईआर दर्ज कराई। कोतवाली, बांदा के पुलिस अधिकारी ने सीजेएम की कलई खोल कर रख दी। एसआईटी जांच में आरोपों को अपराध नहीं माना तो हाईकोर्ट ने बिजली विभाग के अधिकारियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द कर दी और कहा सीजेएम जज बने रहने लायक नहीं है।

यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी तथा न्यायमूर्ति एम ए एच इदरीसी की खंडपीठ ने बिजली विभाग अलीगंज, लखनऊ के अधिशासी अभियंता मनोज कुमार गुप्ता, एसडीओ फैजुल्लागंज, दीपेंद्र सिंह व संविदाकर्मी राकेश प्रताप सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है।

कोर्ट ने कहा एक जज की तुलना अन्य प्रशासनिक पुलिस अधिकारियों से नहीं की जा सकती। हालांकि जज भी अन्य अधिकारियों की तरह लोक सेवक है। किंतु ये न्यायिक अधिकारी नहीं जज है। जिन्हें भारतीय संविधान से संप्रभु शक्ति का इस्तेमाल करने का अधिकार प्राप्त है। कोर्ट ने कहा एक जज का व्यवहार, आचरण, धैर्यशीलता व स्वभाव संवैधानिक हैसियत के अनुसार होना चाहिए। इनकी समाज में शासन की नीति लागू करने वाले अधिकारियों से नहीं की जा सकती।

कोर्ट ने पूर्व चीफ जस्टिस आर सी लहोटी की किताब का उल्लेख करते हुए कहा कि जज जो सुनते हैं, देख नहीं सकते और जो देखते हैं, उसे सुन नहीं सकते। जज की अपनी गाइडलाइंस है। कोर्ट ने चर्चिल का उल्लेख करते हुए कहा कि जजों में दुःख सहन करने की आदत होनी चाहिए और हमेशा सतर्क रहना चाहिए। उनका व्यक्तित्व उनके फैसलों से दिखाई पड़ना चाहिए।

मालूम हो कि बांदा के सीजेएम ने लखनऊ के अलीगंज में मकान खरीदा। जिस पर लाखों रुपए बिजली बिल बकाया था। विभाग ने वसूली नोटिस दी तो मकान बेचने वाले सहित बिजली विभाग के अधिकारियों के खिलाफ अदालत में कम्प्लेंट केस दाखिल किया। जिस पर अपर सिविल जज लखनऊ ने सम्मन जारी किया। किंतु बाद में बिजली विभाग के अधिकारियों का सम्मन वापस ले लिया। यह कानूनी लड़ाई हाईकोर्ट तक मजिस्ट्रेट हारते गये तो बांदा कोतवाली में अधिकारियों के खिलाफ इंस्पेक्टर दान बहादुर को धमका कर एफआईआर दर्ज करा दी। जिसे चुनौती दी गई थी।

कोर्ट ने कहा जज ने व्यक्तिगत हित के लिए पद का दुरुपयोग किया। कोर्ट ने आश्चर्य प्रकट किया कि 14 सालों में मजिस्ट्रेट ने केवल पांच हजार रुपए ही बिजली बिल जमा किया। पूछने पर कहा सोलर पावर इस्तेमाल कर रहे हैं। बिजली विभाग के अधिकारियों पर घूस मांगने का भी आरोप लगाया। बकाया 2 लाख 19 हजार 063 रूपये बिजली बकाये का भुगतान नहीं किया गया। कोर्ट ने एसआईटी जांच कराई तो एफआईआर से किसी भी अपराध का खुलासा नहीं पाया गया। कहा याचियों के खिलाफ कोई केस नहीं बनता।