परिनिंदा के दंड के आधार पर पदोन्नति रोकना उचित नहीं

जयपुर, 21 मई (हि.स.)। राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि परिनिंदा के दंड के आधार पर पदोन्नति नहीं रोकी जा सकती। इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता पुलिसकर्मी को राहत देते हुए उसके संबंध में डीसीपी दक्षिण और संयुक्त गृह सचिव के आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने कहा है कि याचिकाकर्ता को समस्त परिलाभ तीन माह में अदा करने को कहा है। जस्टिस गणेश राम मीणा की एकलपीठ ने यह आदेश रघुवीर सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।

याचिका में वरिष्ठ अधिवक्ता महेन्द्र शाह ने अदालत को बताया की याचिकाकर्ता के वर्ष 2012 में चाकसू थानाधिकारी रहने के दौरान एक एफआईआर दर्ज हुई थी। जिसमें जांच अधिकारी हैड कांस्टेबल को एसीबी ने रिश्वत लेने के मामले में ट्रेप किया था। इसके बाद विभाग ने याचिकाकर्ता को सुपरविजन में लापरवाही बरतने सहित अन्य आधार पर आरोप पत्र दिया। वहीं बाद में तीस मई, 2013 को डीसीपी दक्षिण ने उसे परिनिंदा का दंड दिया। इसके खिलाफ पेश अपील और बाद में रिव्यु भी खारिज हो गई। इसी बीच अगस्त, 2018 में याचिकाकर्ता से जूनियर को पदोन्नति दे दी गई। याचिका में कहा गया कि परिनिंदा लघु प्रकृति का दंड है। इसके आधार पर पदोन्नति रोकने जैसी बडी सजा नहीं दी जा सकती है। याचिका में बताया गया कि पदोन्नति का आधार वरिष्ठता सह-योग्यता होने के कारण उसे पदोन्नति से वंचित नहीं किया जा सकता। जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने विभाग के संबंधित आदेश रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को समस्त परिलाभ देने के आदेश दिए हैं।