कठुआ 06 मई (हि.स.)। श्री ब्राह्मण सभा द्वारा भगवान श्री परशुराम जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित की जा रही श्रीमद् भागवत कथा में के तीसरे दिन पूज्य संत श्री सुभाष शास्त्री जी महाराज ने उपस्थित संगत पर अपने दिव्या प्रवचनों की वर्षा करते हुए कहा सत्य का संग, सत्संग का महत्व समझाते हुए कहा कि कुसंग एक जहर है। जिसका संग बिगड़ गया उसका धीरे-धीरे सब कुछ बिगड़ जाता है कुसंग से वर्तमान तो बिगड़ा ही है, भविष्य भी बिगड़ जाता है। इसलिए कुसंग को जहर जानकर इसे हमेशा भयभीत रहे और सत्य का संग ही करें, क्योंकि सत्संग से सजगता मन में उपजती है।
शास्त्री जी ने कहा कि जो भीतर से सजग है वह संसारी होती हुए भी संन्यासी है और जो भीतर से सजग नहीं है वह सन्यासी होते हुए भी संसारी है। जागरण का नाम सन्यास है। जैसे चुंबक लोहे को खींचता है वैसे ही संन्यास सत्य को खींचता है। संन्यास का अर्थ आप ये कदापि न लें कि घर बाहर छोड़ने वाला सन्यासी होता है, असल में जो इस संसार में रहते हुए भी गृहस्त जीवन का पालन सत्यता पर चलते हुए करता है, वह धर्म की दृष्टि में परम सन्यासी है। शास्त्री जी ने आगे समझाया कि आप हम आपसे सत्संग और कथा में यह बार-बार कहते हैं कि कुसंग से सदैव भयभीत रहे और केवल सत्य का संग करें क्योंकि इसी में आपका कल्याण है। सत्संग का अर्थ है सत्य का संग और सत्य परमात्मा है, सत्य आत्मा है, सत्य हमारा अस्तित्व है, सत्य हमारा स्वरूप है, सत्य हमारा हमारा अपना आपा ही है। इसलिए सत्य के बिना हम किसी का संग करें। अंत में शास्त्री जी ने समझाया कि गहना जब भी, जैसे भी बना, सोने ने उसका संग कभी नहीं छोड़ा, इसी प्रकार हमें जब भी जैसा भी शरीर मिला, सत्य ने हमारा संग नहीं छोड़ा। इस मानव तन में, सत्गुरु के सत्संग में जीव को यदि अपने और अजन्मा, अविनाशी, सत्यस्वरूप का बोध हो जाए, तो यह सदा के लिए जन्म मरण के भय से छूट सकता है। बस इतना ही अंतर है उसे कुसंग और सत्संग में। इसलिए सदा सत्य का संग, सत्संग किया करें निश्चय ही आपका कल्याण होगा