आज पूरी दुनिया में मजदूर दिवस मनाया जा रहा है. इसे मई दिवस या अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस भी कहा जाता है। 1 मई को इसे मनाने के पीछे की वजह भी खास है.
शिकागो में हजारों मजदूरों ने प्रदर्शन किया
दरअसल, 1886 में संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई देशों में श्रमिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष हिंसक हो गया। शिकागो शहर में हजारों मजदूरों के प्रदर्शन के दौरान पुलिस पर बम फेंके गये, जिसके जवाब में पुलिस ने भी गोलियां चलायीं. चार मजदूरों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए.
एक मई को कार्यकर्ताओं को समर्पित करने का निर्णय लिया गया
इसके बाद, दुनिया भर के श्रमिक और समाजवादी दलों के संगठन, सेकंड इंटरनेशनल ने 1889 में पेरिस सम्मेलन के लिए 1 मई को चुना। इस दिन को श्रमिकों को समर्पित करने का निर्णय लिया गया।
सुबह से शाम तक मजदूरों से काम लिया जाता था
दरअसल, जब पश्चिमी देशों में औद्योगीकरण का युग शुरू हुआ तो सूर्योदय से सूर्यास्त तक अधिक श्रमिकों से काम कराया जाने लगा। सभी से 15 घंटे से अधिक काम लिया जा रहा था. इससे लगातार असंतोष पैदा होता रहा। इसके चलते अक्टूबर 1884 में कनाडा और अमेरिका की ट्रेड यूनियनों का संगठन फेडरेशन ऑफ ऑर्गेनाइज्ड ट्रेड्स एंड लेबर यूनियन्स आगे आया।
श्रमिक एक दिन में 8 घंटे से अधिक काम नहीं करेंगे
इसने आदेश दिया कि 1 मई, 1886 के बाद, श्रमिक प्रतिदिन 8 घंटे से अधिक काम नहीं करेंगे। आख़िरकार वह तारीख़ भी आ गई यानी 1 मई 1886 और उस दिन अमेरिका के विभिन्न शहरों के लाखों कर्मचारी हड़ताल पर चले गए।
शिकागो की हड़ताल एक हिंसक झड़प में बदल गयी
इस विरोध प्रदर्शन के केंद्र में अमेरिकी शहर शिकागो था. वहां दो दिनों तक शांतिपूर्वक धरना चलता रहा. 1 मई से शुरू हुई हजारों कर्मचारियों की हड़ताल 3 मई की शाम को अचानक हिंसक हो गई. कुछ प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर हमला कर दिया और उन पर बम फेंके. मैककॉर्मिक हार्वेस्टिंग मशीन कंपनी के बाहर भड़की हिंसा के जवाब में पुलिस ने भी गोलियां चलाईं.
चार मजदूरों की जान चली गयी
जिसमें चार मजदूरों की जान चली गयी. इतना ही नहीं इसके अगले दिन भी पुलिस और कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी. सात पुलिसकर्मियों समेत कुल 12 लोग मारे गये. शिकागो में 1 मई से शुरू हुई हजारों श्रमिकों की हड़ताल 3 मई की शाम को अचानक हिंसक हो गई।
कई देशों में मजदूरों का आंदोलन जारी रहा
फिर भी, 1889 से 1890 के बीच मजदूर अपनी मांगों को लेकर विभिन्न देशों में प्रदर्शन करते रहे। 1 मई, 1890 को ब्रिटेन के हाइड पार्क में तीन लाख मजदूर सड़कों पर उतर आये। उनकी मांग ये भी थी कि मजदूरों से 8 घंटे काम लिया जाए. फिर समय के साथ यह दिन श्रमिकों के अधिकारों की ओर ध्यान आकर्षित करने का अवसर बन गया और आंदोलन जारी रहा।
पेरिस सम्मेलन ने 1 मई को श्रमिकों को समर्पित करने का निर्णय लिया
फिर वर्ष 1889 में पेरिस में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन का आयोजन किया गया और निर्णय लिया गया कि 1 मई को श्रमिकों को समर्पित किया जाये। इसके बाद धीरे-धीरे पूरी दुनिया में 1 मई को मजदूर दिवस या श्रमिक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इस आंदोलन का ही नतीजा है कि आज दुनिया भर में श्रमिकों के लिए काम के अधिकतम आठ घंटे निर्धारित किये गये हैं। इतना ही नहीं, सप्ताह में एक दिन की छुट्टी की शुरूआत भी शिकागो आंदोलन की ही देन है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए दुनिया के कई देशों में 1 मई को राष्ट्रीय अवकाश मनाया जाता है।
भारत में मई दिवस पहली बार 1923 में मनाया गया था।
भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत की बात करें तो इसकी शुरुआत साल 1923 में मद्रास (अब चेन्नई) में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान द्वारा की गई थी। वामपंथी और समाजवादी पार्टियों के नेतृत्व में मजदूरों के संघर्ष और एकता को दर्शाने के लिए लाल झंडे का पहली बार इस्तेमाल 1 मई 1923 को मद्रास में किया गया था। इसी साल भारत में 1 मई को मजदूर दिवस मनाया जाने लगा और यहां भी कई राज्यों में 1 मई को सार्वजनिक अवकाश रहता है.