पंजाब में होगा एवोकाडो का उत्पादन, नूरमहल में बनेगा बाग; बागवानी के क्षेत्र में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा उठाया गया एक और महत्वपूर्ण कदम

 

जालंधर : पंजाब में पारंपरिक फसलों के चक्र से बाहर निकलकर बागवानी का चलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है। पहले जहां केवल भारतीय मूल के फलों की खेती होती थी, वहीं अब विदेशी उद्यान फलों का भी उत्पादन होने लगा है और इसे अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है। पिछले कुछ वर्षों से राज्य में ड्रैगन फ्रूट की खेती इसका एक बड़ा उदाहरण है। अब एवोकैडो की बारी है। इजराइल और दक्षिण अफ्रीका मूल के इस फल के प्रति लोगों का रुझान बढ़ रहा है. लेकिन यह आम बाजार में आसानी से उपलब्ध नहीं है. स्वास्थ्य एवं फसल विविधता की दृष्टि से इसके महत्व को देखते हुए नूरमहल स्थित दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने इसके उत्पादन पर पूरा ध्यान दिया है।

 

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के कृषि एवं बागवानी संबंधी कार्यों में सरगम ​​मधुवाटिका के प्रभारी स्वामी मनेश्वरानंद ने कहा कि राज्य में दिन-ब-दिन भूमिगत जल गहरा होता जा रहा है। इसलिए लोगों को परंपरागत गेहूं-धान की खेती छोड़कर फसल विविधता की ओर बढ़ना होगा। तभी पंजाब को बंजर होने से बचाया जा सकता है। बागवानी कृषि विविधीकरण का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, जहाँ पानी बचाया जा सकता है, वहीं अधिक आय प्राप्त की जा सकती है।

 

स्वामी मनेश्वरानंद का कहना है कि विटामिन और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी तत्वों से भरपूर एवोकाडो मूल रूप से इजराइल और दक्षिण अफ्रीका में पैदा होता है। पिछले कुछ वर्षों से देश के अन्य हिस्सों के अलावा पंजाब के लोगों में भी इस फल के प्रति रुचि बढ़ी है। लेकिन आम बाज़ारों में इसकी उपलब्धता अभी आम नहीं है. इसीलिए लोगों ने अपने घर के बगीचों में इसके पौधे लगाए हैं।

 

 

स्वामी का कहना है कि इस प्रवृत्ति को देखते हुए उन्होंने पंजाब में इस फल के उत्पादन की संभावनाओं पर शोध अध्ययन किया। अध्ययन के दौरान पाया गया कि पंजाब की हवा और पानी इस फल के लिए उपयुक्त है। इसलिए उन्होंने पिछले साल कुछ एवोकाडो के पौधे लगाए, परिणाम अच्छे रहे। अब उन्होंने राज्य के बागवानी विभाग के परामर्श से आधे एकड़ में यह फलों का बगीचा लगाया है। उन्हें पूरी उम्मीद है कि फसल अच्छी होगी.

 

 

 

 

 

इज़राइल और दक्षिण अफ्रीका से आयातित पौधे

 

 

स्वामी मनेश्वरानंद ने कहा कि एवोकैडो फल के पौधे इजराइल और दक्षिण अफ्रीका से मंगवाए गए हैं. पुणे में बनाए गए एक क्वारेंटाइन सेंटर में 8-10 महीने पुराने पौधों को स्टरलाइज़ किया गया. फिर यहां लाकर रोपा। पौधों के बीच की दूरी 12-12 फीट और पंक्तियों के बीच की दूरी 15-15 फीट होती है.

 

 

पांच प्रकार के होते हैं पौधे : उन्होंने बताया कि एवोकाडो का बीजू पौधा (रूट स्टार) पांच प्रकार का होता है. इसमें डिसानिया, फेयरचाइल्ड, जुटानो, ड्यूक सेवन और बाउंटी शामिल हैं। इस फल की चार किस्में हैं- हास, लेम्हास, मलूमहस और इटिंगर। इसका पौधा दो साल बाद फल देना शुरू कर देता है.

 

 

 

 

 

यह फल सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है

 

 

स्वामी मनेशवानंद ने कहा कि एवोकाडो ऐसे विटामिन और तत्वों से भरपूर होता है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है। इसमें विटामिन बी1, बी2, बी, 3, बी5, बी6, बी9, सी, ई, के, कॉपर, पोटैशियम, मैग्नीशियम, जिंक, फॉस्फोरस, आयरन और कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, कैलोरी और आहार फाइबर पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। एवोकाडो को काटकर, शेक बनाकर या मैश करके चटनी के रूप में खाया जाता है।

 

 

 

 

 

किसानों को जागरूक किया जा रहा है

 

 

स्वामी मनेश्वरानंद ने कहा कि किसानों को एवोकाडो की खेती के बारे में जागरूक करने के लिए संस्थान ने हाल ही में मधु वाटिका में ‘एवो विजन’ सेमिनार का आयोजन किया। इस सेमिनार में पंजाब भर से 90 से अधिक किसानों ने भाग लिया। विभिन्न विशेषज्ञों ने किसानों को एवोकाडो फल की खेती के बारे में जानकारीपूर्ण बातें दीं। केवीके नूरमहल के उपनिदेशक डाॅ. डॉ. संजीव कटारिया, फल अनुसंधान उपकेंद्र जल्लोवाल के वरिष्ठ वैज्ञानिक। मृदा एवं जल संरक्षण विभाग के एसडीओ तनजीत चहल, इंजी. डॉ. लुपिंदर कुमार, बागवानी विभाग। महाराष्ट्र के पुणे की न्यू ट्री फार्म एग्रीकल्चर कंपनी के चेयरमैन निखिल अंबीश मेहता और जीवन कुलकर्णी मौजूद रहे।